जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।
दोहे
दोहा मात्रिक अर्द्धसम छंद है। इसके पहले और तीसरे चरण में 13 तथा दूसरे और चौथे चरण में 11 मात्राएं होती हैं। इस प्रकार प्रत्येक दल में 24 मात्राएं होती हैं। दूसरे और चौथे चरण के अंत में लघु होना आवश्यक है। दोहा सर्वप्रिय छंद है।

कबीर, रहीम, बिहारी, उदयभानु हंस, डा मानव के दोहों का संकलन।

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निदा फ़ाज़ली के दोहे  - निदा फ़ाज़ली

बच्चा बोला देख कर मस्जिद आली-शान ।
अल्लाह तेरे एक को इतना बड़ा मकान ।।
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प्रेम पर दोहे  - कबीरदास | Kabirdas

प्रेम न बाड़ी ऊपजै, प्रेम न हाट बिकाय।
राजा-परजा जेहि रुचै, सीस देइ लै जाय॥
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होली व फाग के दोहे - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

भर दीजे गर हो सके, जीवन अंदर रंग।
वरना तो बेकार है, होली का हुड़दंग॥
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लेखक पर दोहे - प्रो. राजेश कुमार

लेखक का गुण एक ही करै भँडौती धाय।
पुरस्कार पै हो नज़र ग्रांट कहीं मिल जाय॥
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रैदास के दोहे - रैदास | Ravidas

जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात।
रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात।।
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फगुनिया दोहे - डॉ सुशील शर्मा

फागुन में दुनिया रँगी, उर अभिलाषी आज।
जीवन सतरंगी बने, मन अंबर परवाज॥
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