जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।
लघुकथाएं
लघु-कथा, *गागर में सागर* भर देने वाली विधा है। लघुकथा एक साथ लघु भी है, और कथा भी। यह न लघुता को छोड़ सकती है, न कथा को ही। संकलित लघुकथाएं पढ़िए -हिंदी लघुकथाएँप्रेमचंद की लघु-कथाएं भी पढ़ें।

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फंदा - सुभाषिनी लता कुमार | फीजी

[फीजी से फीजी हिंदी में लघुकथा]
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मन की बात - मनीष खत्री

एक माँ-बेटी थीं। बेटी जवान हो रही थी, लेकिन उसका विवाह नहीं हो पा रहा था। विधवा वृद्धा माँ इसी चिंता में घुली जा रही थी। जवान बेटी घर से बाहर जाती तो माँ उसकी चौकसी करती। बेटी को यह पसंद नहीं था।
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भावुक - रेखा वशिष्ठ मल्होत्रा

पन्द्रहवाँ पार करके सोलहवें में प्रवेश कर गयी थी वह। परन्तु, अब भी उसकी पलकों में आँसू बाहर ढलकने को सदैव तैयार बैठे रहते। वह छोटी-छोटी बातों पर टसुए बहाते हुए माँ की गोद में मुँह छुपा लेती।
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संबंधी - डॉ प्रेमनारायण टंडन

एक धनी के मकान में आग लग गयी। घरवाले किसी तरह जरूरी सामान के साथ अपने प्राण लेकर जब बाहर आये तब पता चला कि एक बालक अभी घर में ही रह गया है। तब तक आग ने भयंकर रूप धारण कर लिया था इसलिए किसी को सूझ न पड़ा कि बच्चे को कैसे बचाया जाए।
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प्रवासी - रोहित कुमार ‘हैप्पी'

विदेश से भारत लौटने पर--

--तू विदेश छोड़कर भारत क्यों लौट आया? रवि के दोस्त ने सवाल किया।
--वहाँ अपनापन नहीं लगता था। अपना देश अपना होता है, यार।
--तू पागल है! ...पर चल तेरी मरज़ी।

फिर पता नहीं क्या हुआ कि तीन साल तक भारत में रहने के बाद अचानक रवि सपरिवार दुबारा विदेश को रवाना हो गया।
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