मुस्लिम शासन में हिंदी फारसी के साथ-साथ चलती रही पर कंपनी सरकार ने एक ओर फारसी पर हाथ साफ किया तो दूसरी ओर हिंदी पर। - चंद्रबली पांडेय।

काश! मुझे कविता आती

 (काव्य) 
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रचनाकार:

 आशीष मिश्रा | इंग्लैंड

काश! मुझे कविता आती
                लिख देता उनको पुस्तक-सा
  प्रेम भरा दोहा लिखता 
                लिख देता उनको मुक्तक-सा।

  काश! मुझे कविता आती
                 कनखी भरता हर शब्दों में
  हृदय धड़कता रख देता
                 लिख देता बिखरे पन्नों में।

  काश! मुझे कविता आती
                 अक्षर अक्षर सपना बोता
   एक मिलन की उत्सुकता को 
                लिख कर कहता कैसा होता।

  काश! मुझे कविता आती
                   हर पंक्ति होती उपहार 
  अर्पित बंध फूल-सा देता
                लिख देता उनको हर बार।
                 
  काश! मुझे कविता आती
               आँचल  भर-भर  छंद  बनाता
  हर पल उनको ही गाता
              लिखता फिर फिर अंत ना आता
  काश! मुझे कविता आती

                                -आशीष मिश्रा, इंग्लैंड

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