भारतेंदु और द्विवेदी ने हिंदी की जड़ पाताल तक पहुँचा दी है; उसे उखाड़ने का जो दुस्साहस करेगा वह निश्चय ही भूकंपध्वस्त होगा।' - शिवपूजन सहाय।
बात मेरी नहीं मानी... | ग़ज़ल  (काव्य)    Print  
Author:त्रिलोचन
 

बात मेरी नहीं मानी नहीं मानी तुम ने 
जी में जो बात बसी थी वही ठानी तुम ने

मेरा क्या, बात कही और लगा अपनी राह 
अपने आगे किसी की बात न जानी तुम ने

बात बिगड़ी तो बिगड़ती ही गई वन न सकी
गो बनाने में किया खून का पानी तुम ने

विश्व को छत का सुदृढ़ स्तंभ जिन्हें समझा था
देखा है अपनी ही आँखों उन्हें फ़ानी तुम ने

मान वह वस्तु नहीं है जो तुम्हारी हो हो
और भी देखे हैं मन के कई मानी तुम ने

प्रेम जो जी में जगा तो विराग ले बैठे 
ख़ाक दुनिया की इसी लाग में छानी तुम ने

साधना क्या है त्रिलोचन तुम्हें मालूम ही है
देखते भी हो सुनी भी है कहानी तुम ने

-त्रिलोचन 

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