अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।

शेरजंग गर्ग

डॉ गर्ग का जन्म 29 मई, 1937 को देहरादून में हुआ। हिन्दी में व्यंग्य-ग़ज़लें और इनका शोध-प्रबंध 'स्वातंत्र्‌योत्तर हिन्दी-कविता में व्यंग्य' चर्चित रहे।

'बाज़ार से गुज़रा हूं', 'दौरा अंतर्यामी का', 'क्या हो गया कबीरों को' और 'रिश्वत-विषवत' डॉ गर्ग की प्रमुख व्यंग्य-कृतियां हैं।

Author's Collection

Total Number Of Record :2

देश

ग्राम, नगर या कुछ लोगों का काम नहीं होता है देश
संसद, सड़कों, आयोगों का नाम नहीं होता है देश

देश नहीं होता है केवल सीमाओं से घिरा मकान
देश नहीं होता है कोई सजी हुई ऊँची दूकान

देश नहीं क्लब जिसमें बैठ करते रहें सदा हम मौज
...

More...

सीधा-सादा 

सीधा-सादा सधा सधा है 
इसी जीव का नाम गधा है
इसपर कितना बोझ लदा है 
पर रहता खामोश सदा है 
ढेंचू ढेंचू कह खुश रहता 
नहीं शिकायत में कुछ कहता 
काम करो पर नहीं गधे-सा
नाम करो पर नहीं गधे-सा

-शेरजंग गर्ग 
...

More...
Total Number Of Record :2

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश