जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।
संपादकीय
भारत-दर्शन संपादकीय।

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हिंदी को आपका साथ चाहिए पर... - रोहित कुमार हैप्पी

हर वर्ष हम 14 सितंबर को देश-विदेश में हिंदी-दिवस व हिंदी पखवाड़ा जैसे समारोहों का आयोजन करते हैं। निःसंदेह ऐसे आयोजनों के लिए निःस्वार्थ भाव की परम आवश्यकता है। हिंदी को भाषणबाजों और स्वयंभू नेताओं की नहीं बल्कि सिपाहियों की जरूरत है।

इस संदर्भ में कबीर जैसे अलबेले संत कवि का यह कथन 'जो घर फूँके आपणा सो चले हमारे साथ' अपने निजी स्वार्थ छोड़ कर निःस्वार्थ बनने की प्रेरणा देता है।
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