Important Links
काव्य |
जब ह्रदय अहं की भावना का परित्याग करके विशुद्ध अनुभूति मात्र रह जाता है, तब वह मुक्त हृदय हो जाता है। हृदय की इस मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है उसे काव्य कहते हैं। कविता मनुष्य को स्वार्थ सम्बन्धों के संकुचित घेरे से ऊपर उठाती है और शेष सृष्टि से रागात्मक संबंध जोड़ने में सहायक होती है। काव्य की अनेक परिभाषाएं दी गई हैं। ये परिभाषाएं आधुनिक हिंदी काव्य के लिए भी सही सिद्ध होती हैं। काव्य सिद्ध चित्त को अलौकिक आनंदानुभूति कराता है तो हृदय के तार झंकृत हो उठते हैं। काव्य में सत्यं शिवं सुंदरम् की भावना भी निहित होती है। जिस काव्य में यह सब कुछ पाया जाता है वह उत्तम काव्य माना जाता है। |
Articles Under this Category |
छोटे से बड़ा - शिव 'मृदुल' |
जब मैं |
more... |
मंगलाचरण | उपक्रमणिका | भारत-भारती - मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt |
मंगलाचरण |
more... |
प्यारा वतन - महावीर प्रसाद द्विवेदी | Mahavir Prasad Dwivedi |
( १) |
more... |
ज़रा सा क़तरा कहीं आज गर उभरता है | ग़ज़ल - वसीम बरेलवी | Waseem Barelvi |
ज़रा सा क़तरा कहीं आज गर उभरता है |
more... |
हास्य दोहे | काका हाथरसी - काका हाथरसी | Kaka Hathrasi |
अँग्रेजी से प्यार है, हिंदी से परहेज, |
more... |
काका हाथरसी का हास्य काव्य - काका हाथरसी | Kaka Hathrasi |
अनुशासनहीनता और भ्रष्टाचार |
more... |
आराम करो | हास्य कविता - गोपालप्रसाद व्यास | Gopal Prasad Vyas |
एक मित्र मिले, बोले, "लाला, तुम किस चक्की का खाते हो? |
more... |
माँ कह एक कहानी - मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt |
"माँ कह एक कहानी।" |
more... |
मैं दिल्ली हूँ | एक - रामावतार त्यागी | Ramavtar Tyagi |
मैं दिल्ली हूँ मैंने कितनी, रंगीन बहारें देखी हैं । |
more... |
ठाकुर का कुआँ | कविता - ओमप्रकाश वाल्मीकि | Om Prakash Valmiki |
चूल्हा मिट्टी का |
more... |
कभी कभी खुद से बात करो | कवि प्रदीप की कविता - भारत-दर्शन संकलन | Collections |
कभी कभी खुद से बात करो, कभी खुद से बोलो । |
more... |
सुख-दुख | कविता - सुमित्रानंदन पंत | Sumitranandan Pant |
मैं नहीं चाहता चिर-सुख, |
more... |
माँ - जगदीश व्योम |
माँ कबीर की साखी जैसी |
more... |
अश़आर - मुन्नवर राना |
माँ | मुन्नवर राना के अश़आर |
more... |
निकटता | कविता - विष्णु प्रभाकर | Vishnu Prabhakar |
त्रास देता है जो |
more... |
मैं रहूँ या न रहूँ | ग़ज़ल - राजगोपाल सिंह |
मैं रहूँ या न रहूँ, मेरा पता रह जाएगा |
more... |
कबीर दोहे -3 - कबीरदास | Kabirdas |
(41) |
more... |
कड़वा सत्य | कविता - विष्णु प्रभाकर | Vishnu Prabhakar |
एक लंबी मेज |
more... |
किसी के दुख में .... | ग़ज़ल - ज्ञानप्रकाश विवेक | Gyanprakash Vivek |
किसी के दुख में रो उट्ठूं कुछ ऐसी तर्जुमानी दे |
more... |
मुझको अपने बीते कल में | ग़ज़ल - रोहित कुमार 'हैप्पी' |
मुझको अपने बीते कल में, कोई दिलचस्पी नहीं |
more... |
आम आदमी - ब्रजभूषण भट्ट |
आज |
more... |
शब्द और शब्द | कविता - विष्णु प्रभाकर | Vishnu Prabhakar |
समा जाता है |
more... |
भटका हुआ भविष्य - अनिल जोशी | Anil Joshi |
उसने मुझे जब हिन्दी में बात करते हुए सुना, |
more... |
चीन्हे किए अचीन्हे कितने | गीतांजलि - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore |
हुत वासनाओं पर मन से हाय, रहा मर, |
more... |
विपदाओं से मुझे बचाओ, यह न प्रार्थना | गीतांजलि - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore |
|
more... |
मौज-मस्ती के पल भी आएंगे | ग़ज़ल - राजगोपाल सिंह |
मौज-मस्ती के पल भी आएंगे |
more... |
टूट गयी खटिया - शैल चतुर्वेदी | Shail Chaturwedi |
हे वोटर महाराज, |
more... |
विकसित करो हमारा अंतर | गीतांजलि - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore |
विकसित करो हमारा अंतर |
more... |
मेरो दरद न जाणै कोय - मीराबाई | Meerabai |
हे री मैं तो प्रेम-दिवानी मेरो दरद न जाणै कोय। |
more... |
नेता जी की शिकायत - प्रवीण शुक्ला |
एक कवि-सम्मेलन में |
more... |
पिंकी - बाबू लाल सैनी |
एक विरोधी पक्ष के नेता गाँव में पधारे, |
more... |
कृष्ण उवाच - बाबू लाल सैनी |
मुझे सब पता है, तुमने राज्य का क्या हाल किया है ? |
more... |
रसखान की पदावलियाँ | Raskhan Padawali - रसखान | Raskhan |
मानुस हौं तो वही रसखान बसौं मिलि गोकुल गाँव के ग्वारन। |
more... |
दिन अँधेरा-मेघ झरते | रवीन्द्रनाथ ठाकुर - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore |
यहाँ रवीन्द्रनाथ ठाकुर की रचना "मेघदूत' के आठवें पद का हिंदी भावानुवाद (अनुवादक केदारनाथ अग्रवाल) दे रहे हैं। देखने में आया है कि कुछ लोगो ने इसे केदारनाथ अग्रवाल की रचना के रूप में प्रकाशित किया है लेकिन केदारनाथ अग्रवाल जी ने स्वयं अपनी पुस्तक 'देश-देश की कविताएँ' के पृष्ठ 215 पर नीचे इस विषय में टिप्पणी दी है। |
more... |
चल तू अकेला! | रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कविता - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore |
तेरा आह्वान सुन कोई ना आए, तो तू चल अकेला, |
more... |
बाक़ी बच गया अंडा | कविता - नागार्जुन | Nagarjuna |
पाँच पूत भारत माता के, दुश्मन था खूंखार |
more... |
तीनों बंदर बापू के | कविता - नागार्जुन | Nagarjuna |
बापू के भी ताऊ निकले तीनों बंदर बापू के |
more... |
कालिदास! सच-सच बतलाना ! | कविता - नागार्जुन | Nagarjuna |
कालिदास! सच-सच बतलाना ! |
more... |
जिस तरफ़ देखिए अँधेरा है | ग़ज़ल - डा. राणा प्रताप सिंह गन्नौरी 'राणा' |
जिस तरफ़ देखिए अँधेरा है |
more... |
बचकर रहना इस दुनिया के लोगों की परछाई से - विजय कुमार सिंघल |
बचकर रहना इस दुनिया के लोगों की परछाई से |
more... |
महाकवि रवीन्द्रनाथ के प्रति - केदारनाथ अग्रवाल | Kedarnath Agarwal |
महाकवि रवीन्द्रनाथ के प्रति |
more... |
आज भी खड़ी वो... - सपना सिंह ( सोनश्री ) |
निराला की कविता, 'तोड़ती पत्थर' को सपना सिंह (सोनश्री) आज के परिवेश में कुछ इस तरह से देखती हैं: |
more... |
छवि नहीं बनती - सपना सिंह ( सोनश्री ) |
निराला पर सपना सिंह (सोनश्री) की कविता |
more... |
तितली | बाल कविता - नर्मदाप्रसाद खरे |
रंग-बिरंगे पंख तुम्हारे, सबके मन को भाते हैं। |
more... |