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काव्य |
जब ह्रदय अहं की भावना का परित्याग करके विशुद्ध अनुभूति मात्र रह जाता है, तब वह मुक्त हृदय हो जाता है। हृदय की इस मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है उसे काव्य कहते हैं। कविता मनुष्य को स्वार्थ सम्बन्धों के संकुचित घेरे से ऊपर उठाती है और शेष सृष्टि से रागात्मक संबंध जोड़ने में सहायक होती है। काव्य की अनेक परिभाषाएं दी गई हैं। ये परिभाषाएं आधुनिक हिंदी काव्य के लिए भी सही सिद्ध होती हैं। काव्य सिद्ध चित्त को अलौकिक आनंदानुभूति कराता है तो हृदय के तार झंकृत हो उठते हैं। काव्य में सत्यं शिवं सुंदरम् की भावना भी निहित होती है। जिस काव्य में यह सब कुछ पाया जाता है वह उत्तम काव्य माना जाता है। |
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प्यारा वतन - महावीर प्रसाद द्विवेदी | Mahavir Prasad Dwivedi |
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ज़रा सा क़तरा कहीं आज गर उभरता है | ग़ज़ल - वसीम बरेलवी | Waseem Barelvi |
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काका हाथरसी का हास्य काव्य - काका हाथरसी | Kaka Hathrasi |
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माँ कह एक कहानी - मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt |
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मैं दिल्ली हूँ | एक - रामावतार त्यागी | Ramavtar Tyagi |
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ठाकुर का कुआँ | कविता - ओमप्रकाश वाल्मीकि | Om Prakash Valmiki |
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कभी कभी खुद से बात करो | कवि प्रदीप की कविता - भारत-दर्शन संकलन | Collections |
कभी कभी खुद से बात करो, कभी खुद से बोलो । |
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सुख-दुख | कविता - सुमित्रानंदन पंत | Sumitranandan Pant |
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अश़आर - मुन्नवर राना |
माँ | मुन्नवर राना के अश़आर |
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निकटता | कविता - विष्णु प्रभाकर | Vishnu Prabhakar |
त्रास देता है जो |
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किसी के दुख में .... | ग़ज़ल - ज्ञानप्रकाश विवेक | Gyanprakash Vivek |
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कबीर दोहे -3 - कबीरदास | Kabirdas |
(41) |
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कड़वा सत्य | कविता - विष्णु प्रभाकर | Vishnu Prabhakar |
एक लंबी मेज |
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मैं रहूँ या न रहूँ | ग़ज़ल - राजगोपाल सिंह |
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मुझको अपने बीते कल में | ग़ज़ल - रोहित कुमार 'हैप्पी' |
मुझको अपने बीते कल में, कोई दिलचस्पी नहीं |
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आम आदमी - ब्रजभूषण भट्ट |
आज |
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चीन्हे किए अचीन्हे कितने | गीतांजलि - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore |
हुत वासनाओं पर मन से हाय, रहा मर, |
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शब्द और शब्द | कविता - विष्णु प्रभाकर | Vishnu Prabhakar |
समा जाता है |
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मौज-मस्ती के पल भी आएंगे | ग़ज़ल - राजगोपाल सिंह |
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विपदाओं से मुझे बचाओ, यह न प्रार्थना | गीतांजलि - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore |
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हे वोटर महाराज, |
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विकसित करो हमारा अंतर | गीतांजलि - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore |
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मेरो दरद न जाणै कोय - मीराबाई | Meerabai |
हे री मैं तो प्रेम-दिवानी मेरो दरद न जाणै कोय। |
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नेता जी की शिकायत - प्रवीण शुक्ला |
एक कवि-सम्मेलन में |
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पिंकी - बाबू लाल सैनी |
एक विरोधी पक्ष के नेता गाँव में पधारे, |
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कृष्ण उवाच - बाबू लाल सैनी |
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रसखान की पदावलियाँ | Raskhan Padawali - रसखान | Raskhan |
मानुस हौं तो वही रसखान बसौं मिलि गोकुल गाँव के ग्वारन। |
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दिन अँधेरा-मेघ झरते | रवीन्द्रनाथ ठाकुर - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore |
यहाँ रवीन्द्रनाथ ठाकुर की रचना "मेघदूत' के आठवें पद का हिंदी भावानुवाद (अनुवादक केदारनाथ अग्रवाल) दे रहे हैं। देखने में आया है कि कुछ लोगो ने इसे केदारनाथ अग्रवाल की रचना के रूप में प्रकाशित किया है लेकिन केदारनाथ अग्रवाल जी ने स्वयं अपनी पुस्तक 'देश-देश की कविताएँ' के पृष्ठ 215 पर नीचे इस विषय में टिप्पणी दी है। |
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तेरा आह्वान सुन कोई ना आए, तो तू चल अकेला, |
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बाक़ी बच गया अंडा | कविता - नागार्जुन | Nagarjuna |
पाँच पूत भारत माता के, दुश्मन था खूंखार |
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तीनों बंदर बापू के | कविता - नागार्जुन | Nagarjuna |
बापू के भी ताऊ निकले तीनों बंदर बापू के |
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कालिदास! सच-सच बतलाना ! | कविता - नागार्जुन | Nagarjuna |
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जिस तरफ़ देखिए अँधेरा है | ग़ज़ल - डा. राणा प्रताप सिंह गन्नौरी 'राणा' |
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बचकर रहना इस दुनिया के लोगों की परछाई से - विजय कुमार सिंघल |
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महाकवि रवीन्द्रनाथ के प्रति - केदारनाथ अग्रवाल | Kedarnath Agarwal |
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आज भी खड़ी वो... - सपना सिंह ( सोनश्री ) |
निराला की कविता, 'तोड़ती पत्थर' को सपना सिंह (सोनश्री) आज के परिवेश में कुछ इस तरह से देखती हैं: |
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छवि नहीं बनती - सपना सिंह ( सोनश्री ) |
निराला पर सपना सिंह (सोनश्री) की कविता |
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तितली | बाल कविता - नर्मदाप्रसाद खरे |
रंग-बिरंगे पंख तुम्हारे, सबके मन को भाते हैं। |
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