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काव्य |
जब ह्रदय अहं की भावना का परित्याग करके विशुद्ध अनुभूति मात्र रह जाता है, तब वह मुक्त हृदय हो जाता है। हृदय की इस मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है उसे काव्य कहते हैं। कविता मनुष्य को स्वार्थ सम्बन्धों के संकुचित घेरे से ऊपर उठाती है और शेष सृष्टि से रागात्मक संबंध जोड़ने में सहायक होती है। काव्य की अनेक परिभाषाएं दी गई हैं। ये परिभाषाएं आधुनिक हिंदी काव्य के लिए भी सही सिद्ध होती हैं। काव्य सिद्ध चित्त को अलौकिक आनंदानुभूति कराता है तो हृदय के तार झंकृत हो उठते हैं। काव्य में सत्यं शिवं सुंदरम् की भावना भी निहित होती है। जिस काव्य में यह सब कुछ पाया जाता है वह उत्तम काव्य माना जाता है। |
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हमने अपने हाथों में - उदयभानु हंस | Uday Bhanu Hans |
हमने अपने हाथों में जब धनुष सँभाला है, |
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कटी पतंग - डॉ मृदुल कीर्ति |
एक पतंग नीले आकाश में उड़ती हुई, |
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यूँ तो मिलना-जुलना - प्रगीत कुँअर | ऑस्ट्रेलिया |
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दूर गगन पर | गीत - अनिता बरार | ऑस्ट्रेलिया |
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हिंद को सलाम करें, शान के लिये - आशीष मिश्रा | इंग्लैंड |
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सो गई है मनुजता की संवेदना - डॉ. जगदीश व्योम |
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मैं जिसे ओढ़ता -बिछाता हूँ | दुष्यंत कुमार - दुष्यंत कुमार | Dushyant Kumar |
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त्रिलोक सिंह ठकुरेला की कुण्डलिया - त्रिलोक सिंह ठकुरेला |
कुण्डलिया |
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मेरे दुख की कोई दवा न करो | ग़ज़ल - सुदर्शन फ़ाकिर |
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दो-चार बार... | ग़ज़ल - कुँअर बेचैन |
दो-चार बार हम जो कभी हँस-हँसा लिए |
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कला कौ अंग | दोहे - प्रो. राजेश कुमार |
लेखक का गुण एक ही करै भँडौती धाय। |
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एक पगले नास्तिक की प्रार्थना - राजेश्वर वशिष्ठ |
मुझे क्षमा करना ईश्वर |
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साल मुबारक! - अमृता प्रीतम |
जैसे सोच की कंघी में से |
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जो दीप बुझ गए हैं - दुष्यंत कुमार |
जो दीप बुझ गए हैं |
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क्या कहें ज़िंदगी का फ़साना मियाँ | ग़ज़ल - डॉ. शम्भुनाथ तिवारी |
क्या कहें ज़िंदगी का फ़साना मियाँ |
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गए साल की - केदारनाथ अग्रवाल |
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पीर - डॉ सुधेश |
हड्डियों में बस गई है पीर। |
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अब तो मजहब कोई | नीरज के गीत - गोपालदास ‘नीरज’ |
अब तो मजहब कोई, ऐसा भी चलाया जाए |
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नया वर्ष - डॉ० राणा प्रताप गन्नौरी राणा |
नया वर्ष आया नया वर्ष आया, |
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मैं करती हूँ चुमौना - अलका सिन्हा |
कोहरे की ओढ़नी से झांकती है |
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डॉ सुधेश के दोहे - डॉ सुधेश |
हिन्दी हिन्दी कर रहे 'या-या' करते यार। |
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कोरोना पर दोहे - डॉ रामनिवास मानव | Dr Ramniwas Manav |
गली-मुहल्ले चुप सभी, घर-दरवाजे बन्द। |
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मतदान आने वाले ,सरगर्मियाँ बढ़ीं | ग़ज़ल - संजय तन्हा |
मतदान आने वाले, सरगर्मियाँ बढ़ीं। |
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उपस्थिति - जयप्रकाश मानस | Jaiprakash Manas |
व्याकरणाचार्यों से दीक्षा लेकर नहीं |
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संदेश - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
मुझे याद है वह संदेश - |
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हंसों के वंशज | गीत - राजगोपाल सिंह |
हंसों के वंशज हैं लेकिन |
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जय जय जय अंग्रेजी रानी! - डॉ. रामप्रसाद मिश्र |
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हुल्लड़ के दोहे - हुल्लड़ मुरादाबादी |
बुरे वक्त का इसलिए, हरगिज बुरा न मान। |
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मसख़रा मशहूर है... | हज़ल - हुल्लड़ मुरादाबादी |
मसख़रा मशहूर है आँसू बहाने के लिए |
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मुझको सरकार बनाने दो - अल्हड़ बीकानेरी |
जो बुढ्ढे खूसट नेता हैं, उनको खड्डे में जाने दो |
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कंकड चुनचुन - कबीरदास | Kabirdas |
कंकड चुनचुन महल उठाया |
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नया साल : नया गीत - विनिता तिवारी |
नये साल में गीत लिखें |
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सामने आईने के जाओगे - डा. राणा प्रताप सिंह गन्नौरी 'राणा' |
सामने आईने के जाओगे? |
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जड़ें - ममता मिश्रा |
जड़ों में गढ़ के पड़े रहने से |
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इस महामारी में - डॉ मनीष कुमार मिश्रा |
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बकरी - हलीम आईना |
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हे कविता - मनीषा खटाटे |
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वो बचा रहा है गिरा के जो - निज़ाम-फतेहपुरी |
वो बचा रहा है गिरा के जो, वो अज़ीज़ है या रक़ीब है |
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ज़हन में गर्द जमी है--- - ज़फ़रुद्दीन ज़फ़र |
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भला करके बुरा बनते रहे हम - डॉ राजीव कुमार सिंह |
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