देशभाषा की उन्नति से ही देशोन्नति होती है। - सुधाकर द्विवेदी।
 
वृहस्पतिवार व्रतकथा | Brihispatwar katha    

कुशीनगर में धनपतराय नाम का एक धनी व्यक्ति रहता था। उसके घर में कोई अभाव नहीं था। धनपतराय का व्यापार दूर-दूर तक फैला हुआ था। धनपतराय की पत्नी मालती बहुत लोभी औरर् ईष्या-द्वेष करने वाली थी। घर में भंडार भरे होने पर भी वह किसी निर्धन या भिक्षु को कुछ नहीं देती थी।

एक दिन एक संन्यासी धनपतराय के घर पर आया। उसने दरवाजे पर खडे होकर भिक्षा के लिए आवाज लगाई। धनपतराय की पत्नी मालती उस समय ऑंगन लीप रही थी। उसने कहा- 'महाराज! इस समय तो मैं ऑंगन लीप रही ँ। अत: आपको भिक्षा नहीं दे सकती। संन्यासी खाली हाथ लौट गया।

कुछ दिनों बाद भ्रमण करते हुए वही संन्यासी फिर धनपतराय के घर पहुँचा और दरवाजे पर खडे होकर भिक्षा देने के लए आवाज लगाई। मालती ऑंगन में बैठी अपने बेटे को खाना खिला रही थी। उसने संन्यासी से कहा- 'महाराज! मैं अपने बेटे को भोजन करा रही ँ। इस समय आपको भिक्षा नहीं दे सकती। जब मुझे अवकाश हो जाए तो आप आना। संन्यासी फिर निराश होकर खाली हाथ लौट गया।

कुछ दिनों बाद संन्यासी फिर धनपतराय के घर पहुँचा और द्वार पर खडे होकर भिक्षा देने के लिए पुकारा। मालती हाथ में झाडू लिए दरवाजे पर आकर बोली- 'महाराज! घर में झाडू-बुहारी कर रही ँ। उसके बाद बहुत से वस्त्र धोने हैं। आज तो मुझे बिलकुल फुर्सत नहीं। आज तो मैं आपको भिक्षा नहीं दे सकती। फिर कभी फुर्सत के समय आना।

मालती के वचन सुनकर संन्यासी मन ही मन मुस्कराया और धीरे से बोला- 'मैं तुम्हें ऐसा उपाय बता सकता ँ जिससे तुम्हें अवकाश ही अवकाश हो जाएगा। भगवान की लीला से तुम्हारे सभी काम अपने आप पूरे हो जाया करेंगे और फिर तुम पूरा दिन आराम से बैठकर गुजार सकोगी।

संन्यासी की बात सुनकर मालती ने खुश होते हुए कहा- 'महाराज! यदि ऐसा हो जाए तो मैं आपको बहुत-सा धन, अन्न और वस्त्र दान कर दूँगी। आप जल्दी से मुझे वह उपाय बता दीजिए।

संन्यासी ने मन ही मन मुस्कराते हुए धीरे से कहा- 'तुम वृहस्पतिवार को खूब धूप निकलने पर बिस्तर से उठना। फिर घर में झाडू लगाकर सारा कूडा घर के एक कोने में एकत्र कर देना। उस दिन घर में कहीं लीपना नहीं। उस दिन परिवार के सभी पुरुष दाढी अवश्य बनवाएँ। भोजन बनाकर तुम चूल्हे के पीछे रख देना। शाम को ऍंधेरा होने के बाद दीपक जलाना और वृहस्पतिवार को पीले वस्त्र बिलकुल न पहनना। उस दिन पीले रंग की कोई वस्तु या अन्न नहीं खाना। यदि तुम ऐसा करोगी तो तुम्हें कभी कोई काम नहीं करना पडेगा और फिर तुम्हें अवकाश ही अवकाश होगा।

अगले वृहस्पतिवार को मालती ने अपने पति और घर के दूसरे पुरुषों को देर से उठाकर, स्नान करके दाढी के बाल काटने के लिए कह दिया। स्वयं भी उस दिन खूब धूप निकल आने पर ही उठी। भोजन बनाकर उसने चूल्हे के पीछे रखा और घर में दूध की खीर बनाकर सबको पेटभर खिलाई।

कई मास तक मालती हर वृहस्पतिवार को ऐसा ही करती रही। अचानक उसके दुष्कर्मों से उसके पति को व्यवसाय में हानि हुई। घर में चोरी होने से वस्त्र-आभूषण और धन चला गया। नौकर-चाकर उन्हें छोडकर चले गए। घर में अन्न का दाना तक नहीं रहा। लोगों से भिक्षा माँगकर पेट भरने की नौबत आ गई।

मालती अपने घर के बाहर उदास बैठी थी। उसका पति किसी संबंधी से धन उधार लेने गया था। उसी समय संन्यासी वहाँ पर आया। उसने भिक्षा पात्र आगे करते हुए कहा-'भगवान की अनुकम्पा से अब तुम्हें बहुत अवकाश होगा। इसलिए हे देवी, जल्दी से उठकर मुझे थोडी-सी भिक्षा दे दो।

उसे देखते ही मालती संन्यासी के चरणों में गिरकर बोली- 'महाराज! मुझे क्षमा करें। मैंने झूठ बोलकर आपको भिक्षा देने से इनकार किया था। मेरी गलती से मेरे घर की धन-संपत्ति, अन्न और वैभव सब नष्ट हो गया। महाराज! मुझे कोई ऐसा उपाय बताओ, जिससे मेरा घर पहले की तरह अन्न, वस्त्र और धन, वैभव से भर जाए। यदि आपने कोई उपाय नहीं बताया तो मैं आपके चरणों में सिर पटक-पटककर अपने प्राण दे दूँगी।

संन्यासी ने मन ही मन मुस्कराते हुए कहा- 'हे देवी! मेरे चरण छोडो और मेरी बात ध्यान से सुनो। भगवान वृहस्पति ही तुम्हारा कल्याण कर सकते हैं इसलिए प्रत्येक वृहस्पतिवार को उनका व्रत करते हुए उनकी पूजा-अर्चना पीले पुष्पों से अवश्य करो। केले की पूजा करने से अनेक शुभ फल मिलते हैं।

वृहस्पतिवार को घर में कोई पुरुष दाढी व सिर के बाल न कटवाए। सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि करके, घर के ऑंगन को गोबर से लीपकर पूजा करे। शाम को घी का दीपक अवश्य जलाना। तुम विधिवत वृहस्पतिवार का व्रत करोगी तो तुम्हारे घर में धन-धान्य की वर्षा होगी। सभी कामनाएँ पूरी होंगी और सभी को विद्या का लाभ होगा।

इतना कहते ही संन्यासी अंतर्धान हो गए तो मालती आश्चर्यचकित रह गई। उसने प्रत्येक वृहस्पतिवार को विधिवत व्रत किया। वृहस्पतिदेव की अनुकम्पा से उसके घर में धन-धान्य की वर्षा होने लगी। खोया हुआ मान-सम्मान और वैभव पुन: प्राप्त हो गया।

वृहस्पतिवार को जो भी स्त्री-पुरुष वृहस्पतिदेव की विधिवत पूजा करते हैं, उनके घर में सुख-संपत्ति का भंडार भरा रहता है और विद्या के लाभ से अज्ञानता नष्ट होती है। समाज में मान-सम्मान बढता है।

 

 

 
Posted By sharad deep shukla   on Wednesday, 20-Apr-2016-13:59
यह सही में एक बहुत अच्छी कथा है जिसमे लालच न करने का सन्देश मिलता है धन्य वाद
Posted By Vijay Kumar Jain   on Thursday, 30-Oct-2014-07:26
बहुत ही शिक्षा प्रद कहानी पड़ने को मिल रही है धन्यवाद
Posted By pooja antil   on Thursday, 16-Jan-2014-09:04
nice story
Posted By गुड्डोदादी   on Thursday, 20-Jun-2013-05:29
सुंदर पुराणिक कथा मानवता की राह

Comment using facebook

 
 
 
Post Comment
 
Name:
Email:
Content:
  Type a word in English and press SPACE to transliterate.
Press CTRL+G to switch between English and the Hindi language.
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश