अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।

साही और साँप | शिक्षाप्रद कहानी

 (कथा-कहानी) 
Print this  
रचनाकार:

 सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' | Suryakant Tripathi 'Nirala'

कड़ाके की सर्दी पड़ रही थी । एक साँप ने खुशामद पर आकर एक साही को अपने बिल में रहने की जगह दी । वह बिल एक छोटा-सा बिल था । उसमें घूमने-फिरने की काफी जगह न थी । साही के जरा हिलते ही उसके काँटे साँप के चुभते थे ।

साँप ने कहा, ''दोस्त, इस बिल में बहुत थोड़ी जगह है; दो इसमें मुश्किल से अट सकते हैं, तुम्हें बड़ी तकलीफ होती होगी? ''

आराम की आवाज में साही ने कहा, ''ऐसी हालत में जिसे रहने की दिक्कत हो उसे चला जाना चाहिए । मेरी पूछते हो, तो मैं बड़े आराम में हूँ । अगर तुम्हें आराम नहीं तो तुम जब चाहो, इस बिल को छोड़ जाओ ।''

यह कहकर उसने अपनी रीढ़ घुमायी और सांप को अपनी सूरत निकाल लेने को छोड़ दिया । वह उन आदमियों जैसी थी जो अपने मिले हुए हिस्से से ज्यादा लेने की ताक में रहते हैं ।

- सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
[निराला की सीखभरी कहानियाँ]

 

यदि आप इन कहानियों को अपने किसी प्रकार के प्रकाशन (वेब साइट, ब्लॉग या पत्र-पत्रिका) में प्रकाशित करना चाहें तो कृपया मूल स्रोत का सम्मान करते हुए 'भारत-दर्शन' का उल्लेख अवश्य करें।

Back
 
Post Comment
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश