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बुढ़िया चला रही थी चक्कीपूरे साठ वर्ष की पक्की।
दोने में थी रखी मिठाईउस पर उड़ मक्खी आई
बुढ़िया बाँस उठाकर दौड़ीबिल्ली खाने लगी पकौड़ी।झपटी बुढ़िया घर के अंदरकुत्ता भागा रोटी लेकर।
बुढ़िया तब फिर निकली बाहरबकरा घुसा तुरंत ही भीतर।बुढ़िया चली गिर गया मटकातब तक वह बकरा भी सटका।
बुढ़िया बैठ गई तब थककरसौंप दिया बिल्ली को ही घर।
- पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी
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