यदि पक्षपात की दृष्टि से न देखा जाये तो उर्दू भी हिंदी का ही एक रूप है। - शिवनंदन सहाय।

बुढ़िया

 (बाल-साहित्य ) 
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रचनाकार:

 पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी

बुढ़िया चला रही थी चक्की
पूरे साठ वर्ष की पक्की।

दोने में थी रखी मिठाई
उस पर उड़ मक्खी आई

बुढ़िया बाँस उठाकर दौड़ी
बिल्ली खाने लगी पकौड़ी।
झपटी बुढ़िया घर के अंदर
कुत्ता भागा रोटी लेकर।

बुढ़िया तब फिर निकली बाहर
बकरा घुसा तुरंत ही भीतर।
बुढ़िया चली गिर गया मटका
तब तक वह बकरा भी सटका।

बुढ़िया बैठ गई तब थककर
सौंप दिया बिल्ली को ही घर।

- पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी

 

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