यह संदेह निर्मूल है कि हिंदीवाले उर्दू का नाश चाहते हैं। - राजेन्द्र प्रसाद।

आज़ादी

 (काव्य) 
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रचनाकार:

 रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

भोग रहे हम आज आज़ादी, किसने हमें दिलाई थी!
                   चूमे थे फाँसी के फंदे, किसने गोली खाई थी?

बलिवेदी को शीश दिया था, मौत से करी सगाई थी,
                   क्या ‘ऐसी आज़ादी' खातिर हमने जान गंवाई थी?

मांग रहा था  देश खून जब, किसने प्यास बुझाई थी?
                   देश के वीरों ने हँस-हँसकर काहे फाँसी खाई थी !

देश की खातिर मर मिटने की कसमें खूब निभाई थी
                   भारतवासी मिटे हजारों, तब आज़ादी आई थी!

                              -रोहित कुमार 'हैप्पी'

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