अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।

मुक्ता

 (काव्य) 
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रचनाकार:

 सोहनलाल द्विवेदी | Sohanlal Dwivedi

ज़ंजीरों से चले बाँधने
आज़ादी की चाह।
घी से आग बुझाने की
सोची है सीधी राह!


हाथ-पाँव जकड़ो,जो चाहो
है अधिकार तुम्हारा।
ज़ंजीरों से क़ैद नहीं
हो सकता ह्रदय हमारा!

-सोहनलाल द्विवेदी

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