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नाग की बाँबी खुली है आइए साहबभर कटोरा दूध का भी लाइए साहबरोटियों की फ़िक्र क्या है? कुर्सियों से लोगोलियाँ बँटने लगी हैं खाइए साहबटोपियों के हर महल के द्वार छोटे हैंऔर झुककर और झुककर जाइए साहबमानते हैं उम्र सारी हो गई रोतेगीत उनके ही करम के गाइए साहब
बिछ नहीं सकते अगर तुम पायदानों मेंफिर क़यामत आज बनकर छाइए साहब
- डॉ ऋषभदेव शर्मा (तेवरी, 1982)
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