लोहड़ी - लुप्त होते अर्थ

 (विविध) 
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रचनाकार:

 रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

यह सच है कि आज कोई भी त्यौहार चाहे वह लोहड़ी हो, होली हो या दिवाली हो - भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी धूम-धाम से मनाया जाता है। यह भी सत्य है कि अधिकतर आयोजक व आगंतुक इनके अर्थ, आधार व पृष्ठभूमि से अनभिज्ञ होते हैं। आयोजक एक-दो पृष्ठ के भाषण रट कर अपने ज्ञान का दिखावा कर देते हैं और इस तोता रटंत भाषण से हट कर यदि कोई प्रश्न कर लिया जाए तो उनकी बत्ती चली जाती है और आगंतुक/दर्शक वर्ग तो मौज-मस्ती के लिए आता है। आज लोहड़ी है - लेकिन अब कितने बच्चों को लोहड़ी के गीत आते हैं? कौन मां-बाप लोहड़ी के गीत गा अपने बच्चों को पड़ोसियों के घर लोहड़ी मांगने जाने की अनुमति देते हैं? और भूल-चूक से यदि कोई बच्चा आ ही जाए आपके द्वार तो आपके घर में न लकड़ी होगी, न खील और न मक्का तो पारंपरिक तौर पर उन्हें देंगे क्या? त्यौहार के नाम पर बस बालीवुड का हो-हल्ला सुनाई देता है! अच्छे भले गीतों का संगीत बदल कर उनका सत्यानाश करके उसे 'रिमिक्स' कह दिया जाता है। कुछ दिन पहले एक परिचित का फोन आया, "13 को आ जाओ! मेरे बेटे की पहली लोहड़ी है!" मैंने अनभिज्ञता जताते हुए पूछ लिया, "इसके बारे में कुछ बताइए कि लोहड़ी क्या है, क्यों मनाई जाती है?"

बस साहब को कुछ पता हो तो बताएँ! बस एक अंधी दौड़ चल रही है- "वो मना रहे हैं, हमको भी मनाना है!" अब हमारे न्यूज़ीलैंड का उदाहरण ले लें - आजकल यहां गर्मी का मौसम है। अब इस मौसम में आग के पास बैठना शरीर व स्वास्थ्य के लिए कितना उचित होगा? और जब आपको इस बात का पता ही नहीं कि आप मना क्या और क्यों रहे हैं तो अकारण ही दूसरों को आग में झुलसाने का कोई कारण या अर्थ?

यदि आप वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो पाएंगे कि भारत के सभी त्यौहार उस स्थान की भौगोलिक स्थितियों के पूर्णतया अनुकूल हैं। आप देखिए और समझिए कि जहां 13 जनवरी को उत्तर भारत में शीत लहर होती है वहां लोहड़ी के अवसर पर आग के निकट बैठना, तिल की बनी चीज़े खाना व नाच-गाना यह सब स्वास्थ्य के लिए हितकर ही होगा। अब देखिए लोहड़ी के एक दिन बाद मनाए जाने वाले दक्षिण भारतीय त्यौहार, 'पोंगल' को नदी में स्नान का विधान है! क्यों? क्योकि वहां गर्मी होती है! अब सोचिए यदि उत्तर भारत की लोहड़ी की प्रात: (सुबह) को नदी में स्नान व दक्षिण भारतीय त्यौहार, 'पोंगल' की संध्या को आग जलाकर उसके निकट नाच-गाना करना हो, तो क्या हो? तात्पर्य यह है कि जो तीज-त्यौहार जहां का मूलत: है वह वहां की स्थितियों-परिस्थितियों के अनुकूल व अनुरूप है किंतु जब से हमने उनके अर्थों को समझना बंद कर दिया व अंधानुकरण करना आरंभ कर दिया त्योहारों के अर्थ व उनकी महत्ता लुप्त हो गई।

- रोहित कुमार 'हैप्पी'

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