अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।

गर धरती पर इतना प्यारा

 (बाल-साहित्य ) 
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रचनाकार:

 डॉ शम्भुनाथ तिवारी

गर धरती पर इतना प्यारा,
बच्चों का संसार न होता !

बच्चे अगर नहीं होते तो,
घर-घर में वीरानी होती ।
दिल सबका छू लेनेवाली ,
नहीं तोतली बानी होती ।
गली-गली में खेल-खिलौनों,
का, भी कारोबार न होता ।।
गर धरती पर इतना प्यारा,
बच्चों का संसार न होता !

बात-बात में तुनकमिजाजी,
जिद्द-शरारत करता कौन ?
बातें मनवाने की खातिर ,
घर वालों से लड़ता कौन ?
धक्का-मुक्की ,मानमनौवल,
झूठमूठ मनुहार न होता ।।
गर धरती पर इतना प्यारा,
बच्चों का संसार न होता !

माँ की चोटी खींचखींचकर,
दिनभर उसे सताता कौन ?
दादी का चश्मा,दादा की ,
छतरी-छड़ी छुपाता कौन ?
उन दोनों की लाठी बनने -
को कोई तैयार न होता ।।
गर धरती पर इतना प्यारा,
बच्चों का संसार न होता !

अपनी बालकलाओं से गर,
कान्हा जग को नहीं रिझाते।
तो शायद ही सूरदास जी ,
वात्सल्य -सम्म्राट कहाते ।।
छेड़ सके जो तान सुरीली ,
वीणा में वह तार न होता ।।
गर धरती पर इतना प्यारा,
बच्चों का संसार न होता !

बच्चों की नटखट लीलाएँ ,
जिद्द-शरारत लगतीं प्यारी।
बिन बच्चों के कैसी दुनिया,
जहाँ नहीं उनकी किलकारी।
स्वर्ग-सरीखा सुंदर धरती-
का, सपना साकार न होता ।
गर धरती पर इतना प्यारा,
बच्चों का संसार न होता !


- डॉ. शम्भुनाथ तिवारी
  एसोशिएट प्रोफेसर
  हिंदी विभाग,
  अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी,
  अलीगढ़(भारत)
  संपर्क-09457436464
  ई-मेल: sn.tiwari09@gmail.com

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