भारत की परंपरागत राष्ट्रभाषा हिंदी है। - नलिनविलोचन शर्मा।

विकसित करो हमारा अंतर | गीतांजलि

 (काव्य) 
Print this  
रचनाकार:

 रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore

विकसित करो हमारा अंतर
           अंतरतर हे !

उज्ज्वल करो, करो निर्मल, कर दो सुन्दर हे !
जाग्रत करो, करो उद्यत, निर्भय कर दो हे !
मंगल करो, करो निरलस, निसंशय कर हे !

     विकसित करो हमारा अंतर
                   अंतरतर हे !

युक्त करो हे सबसे मुझको, बाधामुक्त करो,
सकल कर्म में सौम्य शांतिमय अपने छंद भरो
चरण-कमल में इस चित को दो निस्पंदित कर हे !
नंदित करो, करो प्रभु नंदित, दो नंदित कर हे !

           विकसित करो हमारा अंतर
                        अंतरतर हे !

 

-रवीन्द्रनाथ टैगोर

#

साभार - गीतांजलि, भारती भाषा प्रकाशन (1979 संस्करण), दिल्ली

अनुवादक - हंसकुमार तिवारी


Rabindranath Tagore Ki Geetanjli

 

 

Back
 
Post Comment
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश