भारत की परंपरागत राष्ट्रभाषा हिंदी है। - नलिनविलोचन शर्मा।

भारतीय उच्चायोग का मतलब सेवा है : उच्चायुक्त परदेशी

 (विविध) 
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रचनाकार:

 रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

HC Sh Pardeshi

न्यूज़ीलैंड में भारत के उच्चायुक्त मुक्तेश परदेशी अपना तीन वर्ष का कार्यकाल पूर्ण करके भारत लौट रहे हैं, जहां वे जी-20 के संचालन के प्रमुख होंगे।  उच्चायुक्त परदेशी ने 29 जुलाई 2019 को न्यूज़ीलैंड में अपना कार्यभार सँभाला था। एक राजनयिक के रूप में आप 1991 में भारतीय विदेश सेवा में सम्मिलित हुए। इससे पहले आप अप्रैल 2016 से जून 2019 तक मैक्सिको में भारत के राजदूत थे। आपने दिल्ली विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की थी। 1991 में राजनयिक सेवा में प्रवेश करने से पहले हिंदू कॉलेज और दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से स्नातक और मास्टर ऑफ आर्ट्स प्राप्त किया। स्पेनिश में डिप्लोमा भी प्राप्त किया है। 
28 वर्षों के अपने राजनयिक जीवन में 'उच्चायुक्त परदेशी' विदेश मंत्रालय, नई दिल्ली में उप सचिव (दक्षिण पूर्व एशिया और प्रशांत) भी रहे। 1993-2001 के दौरान मैक्सिको सिटी, बोगोटा और काठमांडू में भारतीय मिशनों में भी काम किया।  काठमांडू में बी पी कोइराला इंडिया-नेपाल फाउंडेशन के सचिव का पद भी संभाला।

6 जुलाई 2022 को भारत-दर्शन के साथ हुई बातचीत के मुख्य अंश :

न्यूज़ीलैंड में आपका कार्यकाल कैसा रहा?
सबसे पहले तो मैं भारत दर्शन और आपको धन्यवाद देना चाहूंगा कि दोनों संस्थाओं 'भारत के हाई कमीशन' और 'भारत-दर्शन' ने पिछले 3 वर्षों में और उससे पहले भी हम मिलजुल कर काम करते रहे हैं और मुझे आशा है कि आने वाले दिनों में यह जो सहयोग आपका हमें प्राप्त हुआ है, मिलता रहेगा हाई कमीशन को।

मेरा 3 वर्ष का कार्यकाल अच्छा रहा, मैं जुलाई 2019 में आया था और मैंने 3 वर्षों का एक्शन प्लान बनाया था, उसमें बहुत सारी चीजें थी कि हमारा जो कॉन्ट्रैक्ट है, दोनों देशों के बीच में उसे और ऊपर ले जाया जा सके। ट्रेड रिलेशंस में और बढ़ोतरी हो, ट्रेड टॉइज़ में।  और कल्चरल, कम्युनिटी डिप्लोमेसी में एक ट्रांसफॉरमेशन लाया जाए,  यह मेरी उम्मीदें थी। काफी हद तक इसमें सफलता मिली है लेकिन कोविड-19 के कारण, यह जगजाहिर है कि उसके कारण एक ऐसी स्थिति पैदा हुई, जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी। इसके कारण केवल न्यूजीलैंड और हिंदुस्तान ही नहीं, पूरे विश्व पर ऐसा असर पड़ा कि पूरे 2 साल तक ट्रैवल बिल्कुल बंद रहा।

लॉकडाउन का भी उच्चायोग की सेवाओं पर असर पड़ा होगा?
जब ट्रैवल बंद रहा, लॉकडाउन होता रहा, सप्लाई इश्यूज रहे, उस बीच हम लोगों ने हाई कमीशन का यह प्रोजेक्ट पूरा किया। जब 2 साल तक पूरा विश्व जूझ रहा था कोविड-19 से, उस पीरियड में 90 मिलियन न्यूजीलैंड डॉलर का प्रोजेक्ट खड़ा करना सेंट्रल वेलिंगटन में, जोकि आर्किटेक्चुरली बहुत अपीलिंग है और यह फंक्शनली बड़ी एफिशिएंट बिल्डिंग है। इसको करना, मैं कहूंगा कि हाई कमीशन टीम के लिए यह सबसे बड़ी उपलब्धि है। और यह उपलब्धि केवल 3 वर्षों की नहीं है। मैं कहूंगा जब मैं 70 वर्षों का इतिहास देखता हूं, भारत और न्यूजीलैंड के संबंधों का और जैसा कि  विदित है भारत और न्यूजीलैंड के ऑफिशियल रिलेशंस 1950 में शुरू हुए थे, उस समय हमें आजादी मिले हुए केवल 3 वर्ष ही हुए थे, परंतु उन 3 वर्षों में ही भारत ने  निर्णय लिया कि न्यूजीलैंड में हमारा ऑफिसर रिप्रेजेंटेशन होना चाहिए। और भारत एशिया का पहला देश था जिसने पहले यहां वाणिज्य राजदूत स्थापित किया 1950 में ट्रेड कमिश्नर ऑफिस, और अगले 2 साल में 1952 में उसको हाई कमीशन लेवल पर ले जाया गया। हाई कमिश्नर Non-resident थे, ऑस्ट्रेलिया से थे लेकिन एक टीम वेलिंगटन से काम करती थी। फर्स्ट सेक्रेट्री लेवल पर यहां से काम करती थी तो हमारा जो ऑफिशियल और राजनयिक संबंध है उसका  7 दर्शकों का इतिहास है। शुरुआत में बहुत मॉडेस्ट मैनर में इसकी शुरुआत हुई।  आज जब यह हमारे पास बिल्डिंग बन गई है तो मैं कहना चाहूंगा कि एक नया अध्याय शुरू हुआ है। एक यह जो हमारा स्थान है,  यह केवल एक फिजिकल इन्फ्राट्रक्चर नहीं है।

मैं आपको यह बताना चाहूंगा कि इस फिजिकल स्ट्रक्चर के कारण हमें आंतरिक सुविधाएं जरूर मिली है और आपके श्रोताओं और पाठकों को बताना चाहूंगा कि वे यह ना समझे कि यह तो उच्चायोग के कर्मचारियों के काम के लिए बनाया गया है, इसमें भारत और न्यूजीलैंड के संबंध या भारतीय समुदाय के लिए क्या है? What is there for wider community in this?  मैं यह कहना चाहूंगा कि इसमें इसका ध्यान रखा गया है तो सबसे पहले तो हमें जो यह इंटरनल फैसिलिटी प्राप्त हुई है, उससे हमारे उच्चायोग की 30 लोगों की टीम, और  अधिक एफिशिएंसी के साथ काम कर सकेंगे। ठीक है, तो हम कह सकते हैं, फंक्शनली यह बहुत इंपोर्टेंट है। दूसरा, भारतीय उच्चायोग का मतलब सेवा है। We are here to serve people. और जब सर्विस की बात करते हैं तो उसमें तमाम चीजें हैं–पासपोर्ट है कोमा वीजा है, ओसीआई कार्ड है- जो बच्चे जन्म लेते हैं उनके लिए हम रजिस्ट्रेशन करते हैं, ऐसे लोग हैं जो अच्छा आए हैं, जो बेसहारा हैं  उनके लिए हमें घर हैं, हमारे दरवाजे खुले हैंतो जो सेवाएं हम प्रदान करते हैं इनको हम और बैटरी से प्रदान कर सकते हैं। अब यदि आप हमारे काउंसिल में जाएंगे तो वहां पर इस तरह की व्यवस्था है कि आप वहां क्यों टिकट लेंगे के बाद आप बैठ सकते हैं वहां पर पानी की व्यवस्था है और वे वहां पर आराम से प्रतीक्षा कर सकते हैं। उसके बगल में एक लाइब्रेरी की व्यवस्था है जहां जहां पे रीडिंग रीडिंग रूम का इस्तेमाल कर सकते हैं तो इस प्रकार की सभी सुविधाएं जो लोग हमारी सेवा लेने के लिए आएंगे उन्हें प्रदान की जा रही है।

'उच्चायुक्त मुक्तेश परदेशी ने दिल्ली विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त की थी, जहाँ उन्होंने 1991 में राजनयिक सेवा में प्रवेश करने से पहले क्रमशः हिंदू कॉलेज और दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से स्नातक और मास्टर ऑफ आर्ट्स किया था। उन्होंने मैक्सिको से स्पेनिश में डिप्लोमा भी किया है। 

आपकी पत्नी का नाम राखी परदेशी है और आपकी दो बेटियां हैं। श्रीमती परदेशी सामाजिक और धर्मार्थ गतिविधियों में लगी हुई हैं। वे दो अवधियों (2018-19) के लिए डिप्लोमैटिक स्पाउस, मैक्सिको सिटी की एसोसिएशन की अध्यक्षा के रूप में कार्य कर चुकी है।'

- रोहित कुमार 'हैप्पी', न्यूज़ीलैंड

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