यदि पक्षपात की दृष्टि से न देखा जाये तो उर्दू भी हिंदी का ही एक रूप है। - शिवनंदन सहाय।

अभिसारिका | गद्यगीत

 (विविध) 
Print this  
रचनाकार:

 जगन्नाथ प्रसाद चौबे वनमाली

प्रतिदिन संझा लाली से झोली भर अभिसार के लिए अपना श्रृंगार करती है।
तारे आकर गीत गाने लगते हैं।

आँखों की काली रेखा को पारकर मद का संगीत सारे जगत में बहकर फैल जाता है।
पैरों के पायल मीठी गत में बजकर एक रसना की सृष्टि करते हैं।

उस पार खड़ा प्रेमी अपनी इस चिरयौवना नायिका को अभिसार के लिए आते देख
कुटिल हँसी से मुस्करा उठता है।

संझा लज्जा से भर अपनी झोली की लाली फेंक देती है और अपने को काले आवरण में छिपा लौट आती है।

अनन्त की इस अभिसारिका का अभिसार व्यर्थ ही चला करता है।

-वनमाली

Back
 
Post Comment
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश