यह संदेह निर्मूल है कि हिंदीवाले उर्दू का नाश चाहते हैं। - राजेन्द्र प्रसाद।

अपने-अपने युद्ध, अपनी-अपनी झंडाबरदारी

 (विविध) 
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रचनाकार:

 प्रो. राजेश कुमार

झंडा हमारा गौरव है, हमारी शान है, हमारी बान है, हमारी आन है, हमारी पहचान है। लहराते हुए झंडे को देखते ही महाकवि के शरीर में सिहरन दौड़ जाती है, वे देश-प्रेम की भावना में गोते खाने लगते हैं, मातृभूमि के लिए कुछ कर गुज़रने कि भावनाओं में बहने लगते हैं।

रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया है। वह कहता रहा कि वह आक्रमण नहीं करेगा, अमेरिका और यूरोपियन यूनियन उसे डराते रहे कि देखो हमला मत कर देना, और जब वह बहुत डर गया, तो उसने आखिरकार थक-हारकर हमला कर ही दिया। और वह डरा ही नहीं, बल्कि उसने यूक्रेन को यह भी कह दिया कि मैं तेरे छत्तीस-के-छत्तीस दाँत तोड़ दूँगा, और जब अमेरिका ने कहा कि इसके तो बत्तीस ही दाँत हैं, तो उसने कहा कि मैंने तेरे चार दाँत भी पहले ही जोड़ लिए हैं।

हमला करने का उसका अपना औचित्य है, हमले का विरोध करने का यूक्रेन का अपना औचित्य है, रूस का विरोध करने का अमेरिका और दूसरे देशों का अपना औचित्य है, और ऐसी स्थिति में दुविधा में रहने वाले देशों का अपना औचित्य है, और जब सबके अपने-अपने औचित्य होते हैं, तो युद्ध होना लाजिमी होता है, सो हो रहा है।

युद्ध होते ही तरह-तरह की बातें होने लगी हैं, और महाकवि राम के झरोखे में बैठकर जग का मुजरा लेने में लग गए हैं।

सबसे पहले तो महाकवि ने देखा की पांडेयजी, राधेलाल, और रामखेलावन वगैरह राशन जमा करने में लग गए हैं। राशन का मतलब उनका मुख्य रूप से दारू की बोतलों से होता है। जब महाकवि ने उनसे पूछा कि तुम लोग यह सब क्यों कर रहे हो? युद्ध तो यूक्रेन और रूस के बीच हो रहा है, जो हमारे देश से बहुत दूर है, तो उन सबने मिलकर महाकवि को ज्ञान दान किया कि भारत के व्यापारियों और सरकार को तो कोई-न-कोई बहाना चाहिए होता है, दाम बढ़ाने के लिए, इसलिए वे अच्छे दिनों के लिए तैयारी कर रहे हैं।

कुछ लोगों ने शांति का बिगुल फूँकना शुरू कर दिया है। वे कह रहे है की युद्ध कभी भी शांति का विकल्प नहीं हो सकता, युद्ध में हमेशा लोगों के जान जाती है, माल नष्ट होता है, और युद्ध में चाहे कोई भी पक्ष जीते, नुक़सान में हमेशा मानवता ही रहती है। ये लोग भूल जाते हैं कि शांति का महत्व युद्ध के होने से ही पता चलता है, कि कभी-कभी अपनी आन-बान-शान को बनाए रखने के लिए युद्ध ज़रूरी हो जाता है, कि अगर हमारे घर पर कोई हमला कर दे तो हम शांति का दामन थामे हुए नहीं रह सकते, कि अगर कोई हमारे देश की ज़मीन पर कब्ज़ा कर ले तो शांति का राग कायरता होती है, कि अगर आततायी सिर पर चढ़ जाता है तो उसे सबक सिखाना ज़रूरी हो जाता है।

ये लोग नहीं जानते कि हमें हमेशा युद्ध करते रहना पड़ता है, कभी हम अपने विचारों से युद्ध करते हैं, कभी हम अपनी स्थितियों से युद्ध करते हैं, कभी हम अत्याचारी से युद्ध करते हैं, कभी हम अन्याय से युद्ध करते हैं, कभी हम ग़रीबी से युद्ध करते हैं, कभी हम असमानता से युद्ध करते हैं, कभी हम ग़लत क़ानूनों से युद्ध करते हैं, कभी हम ग़लत नीतियों के ख़िलाफ़ युद्ध करते हैं, कोई हमें आपस में लड़वाता है तो हमें उसके ख़िलाफ़ युद्ध करते हैं, हम झूठ के ख़िलाफ़ युद्ध करते हैं, हम अंधेरे के ख़िलाफ़ युद्ध करते हैं, हम अशिक्षा के ख़िलाफ़ युद्ध करते हैं, हम ज्ञान के ख़िलाफ़ युद्ध करते, और अगर हम युद्ध नहीं करते तो फिर हम ग़ुलाम हो जाते हैं, हमारी आत्मा मर जाती है। युद्ध में तो हम एक बार ही करते हैं, लेकिन आत्मा के मरने पर हम बार-बार मरते हैं, रोज़-रोज़ मरते हैं।

यूक्रेन में भारतीय विद्यार्थी और भारतवासी फँसे हुए हैं, क्योंकि हमेशा की तरह सरकार ने उन्हें वहाँ से निकालने में कोई जल्दी नहीं की, क्योंकि जल्दी का काम तो शैतान का होता है, और सरकार चाहे शैतान जैसी लगे, लेकिन वह शैतान का काम नहीं करती। दूसरे देशों ने अपने नागरिकों को वहाँ से बहुत पहले ही निकाल लिया था। निकाल लें, उनके पास कोई काम थोड़े ही है! हमारी सरकार के पास तो हज़ार काम लगे रहते हैं। तो जब समय मिलेगा, तभी तो वे अपने नागरिकों को दूसरे देश से निकालेंगे। पहले अपने देश की समस्याएँ हल कर लें, तभी तो बाहर की तरफ़ देखने का समय मिलेगा। पहले चुनाव के लिए रैलियाँ कर लें, तभी तो दूसरी समस्याओं को देख सकेंगे। चुनाव ही हार गए, तो फिर क्या देश और क्या नागरिक!

विमान सेवा बंद हो चुकी है, और बंद होने से पहले विमान सेवा ने टिकट के दाम तीन-चार गुना तक बढ़ा दिए थे, आप तौर से भारतीय लोगों को सड़क के रास्ते दूसरे देश जाकर वहाँ से भारत आने की एडवाइजरी जारी की गई है, और उन्हें बताया गया है कि अपने साथ भारत का झंडा रखें, ताकि लोग उन्हें परेशान न करें। बच्चे परेशान हैं, उनके साथ दुर्व्यवहार किया जा रहा है, ठंड में सड़क पर रहना पड़ रहा है, उनसे पैसे ऐंठे जा रहे हैं, उन्हें नस्लवाद का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन ज़्यादा चिंता की बात नहीं है, क्योंकि अपने देश में उन्हें इन सब चीज़ों की आदत पहले ही हो चुकी थी। जो विद्यार्थी किसी तरह से भारत लौट आने में सक्षम हो रहे हैं, उनका यहाँ भव्य स्वागत किया जा रहा है और उन्हें सकुशल बचा लाने के लिए सरकार वाहवाही करने में जुटी हुई है।

राष्ट्रवादी लोग अपने काम पर लग गए हैं। उन्हें दिखाई नहीं दे रहा कि भारतवासी भूखी-प्यासे पैदल दूसरे देश तक जाने के लिए मजबूर हो गए हैं। यह उनकी देखी-भाली चीज़ है, क्योंकि कोरोना भी उन्होंने लोगों को हज़ारों किलोमीटर पैदल चलते हुए देखा है। वैसे भी पैदल चलना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है, और गांधीजी भी तो आखिर पैदल चला करते थे, और पैदल चल-चलकर ही उन्होंने देश से अंग्रेज़ों को खदेड़ दिया था। लोग कह रहे हैं कि देखो भारत की शक्ति, उसके झंडे को देखकर कोई भी भारतवासी को छुएगा भी नहीं। यह है, भारत और भारत के झंडे का सम्मान। उन्हें कोई समझा नहीं सकता कि युद्ध के भी नियम होते हैं, और उसमें हर देश के झंडे की ताक़त बराबर होती है, हर विदेशी नागरिकों को इन सब चीज़ों से एक तरह की प्रतिरक्षा मिली होती है।

पर महाकवि को जो सबसे प्रभावशाली बात पता चली है, वह यह है कि भारतवासी एक बस में बैठकर दूसरे देश जा रहे थे कि तभी ऊपर से रूस के विमान के ने बम फेंक दिया। वह बम सीधा बस के ऊपर गिरने वाला था कि उसने अचानक देखा कि बस पर भारत का झंडा लगा हुआ है। बम भारत का झंडा देखकर बस पर नहीं गिरा, बल्कि उसके आगे जाकर गिरा। उसने बम को रुकने का इशारा किया और झंडे को दंडवत प्रणाम किया, बस में सवार सभी लोगों को हाथ जोड़कर नमस्कार किया और उनका आशीर्वाद लिया, और इसके बाद वह बम वहाँ से उड़ गया, और उड़ा ही नहीं, बल्कि सीधे उस बस पर जाकर गिर गया, जिसमें पाकिस्तान के नागरिक यात्रा कर रहे थे, जिसका पता उसे इस बात से लगा कि बस पर पाकिस्तान का झंडा लगा हुआ था।

यह सुनकर तो महाकवि के मुँह से सिर्फ़ इतना ही निकला कि बस भी कर दो भाई!

-प्रो. राजेश कुमार

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