प्रत्येक नगर प्रत्येक मोहल्ले में और प्रत्येक गाँव में एक पुस्तकालय होने की आवश्यकता है। - (राजा) कीर्त्यानंद सिंह।

वंदे मातरम्‌

 (काव्य) 
Print this  
रचनाकार:

 सुब्रह्मण्य भारती | Subramania Bharati

जय भारत, जय वंदे मातरम्‌॥
जय-जय भारत जय-जय भारत, जय-जय भारत, वंदे मातरम्‌।
जय भारत, जय वंदे मातरम्‌।।

एक वाक्य है केवल, जिसको दुहराना है,
आर्यभूमि की आर्य नारियों नर सूर्यों को : वंदे मातरम्‌।
जय भारत, जय वंदे मातरम्‌।।

एक वाक्य है केवल, जिसको दुहराना है,
घुट-घुटकर मरते भी अति पीड़ित जन-जन को : वंदे मातरम्‌।
जय भारत जय वंदे मातरम्‌।।

प्राण जाएँ पर चिर नूतन उमंग से भरकर
केवल एक वाक्य गाएँगे हम सब मिलकर : वंदे मातरम्‌।
जय भारत, जय वंदे मातरम्‌॥

जय-जय भारत, जय-जय भारत, जय-जय भारत, वंदे मातरम्‌।
जय भारत, जय वंदे मातरम्‌॥
मूल शीर्षक : 'वंदे मातरम्‌'

-सुब्रह्मण्य भारती

(साभार : सुब्रह्मण्य भारती की राष्ट्रीय कविताएं एवं पांचाली शपथम्, रूपांतर: नागेश्वर सुंदरम्,
विश्वनाथ सिंह विश्वासी)

Back
 
Post Comment
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश