अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।

बचपन से दूर हुए हम

 (बाल-साहित्य ) 
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रचनाकार:

 डॉ. जगदीश व्योम

छीनकर खिलौनो को बाँट दिये गम
बचपन से दूर बहुत दूर हुए हम

अच्छी तरह से अभी पढ़ना न आया
कपड़ों को अपने बदलना न आया
लाद दिए बस्ते हैं भारी-भरकम
बचपन से दूर बहुत दूर हुए हम

अँग्रेजी शब्दों का पढ़ना-पढ़ाना
घर आकर, दिया हुआ काम निबटाना
होमवर्क करने में निकल जाय दम
बचपन से दूर बहुत दूर हुए हम

देकर के थपकी न माँ मुझे सुलाती
दादी भी अब नहीं कहानियाँ सुनाती
बिलख रही कैद बनी‚ जीवन सरगम
बचपन से दूर बहुत दूर हुए हम

इतने कठिन विषय कि छूटे पसीना
रात भर किताबों को घोट-घोट पीना
उस पर भी नम्बर आते हैं बहुत कम
बचपन से दूर बहुत दूर हुए हम

-डा० जगदीश व्योम

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