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निविड़ निशा के अन्धकार मेंजलता है ध्रुव तारा अरे मूर्ख मन दिशा भूल करमत फिर मारा मारा-- तू, मत फिर मारा मारा।
बाधाओं से घबरा कर तू हँसना गाना बन्द न कर तू धीरज धर तू, साहस कर तूतोड़ मोह की कारा--तू, मत फिर मारा मारा।
चिर आशा रख, जीवन-बल रख संसृति में अनुरक्ति अटल रख सुख हो, दुख हो, तू हँसमुख रहप्रभु का पकड़ सहारा--तू, मत फिर मारा मारा।
-रबीन्द्रनाथ टैगोर भावानुवाद : रघुवंशलाल गुप्त, आई सी एस, इंडियन प्रैस, प्रयाग
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