जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।

प्रेम के कई चेहरे

 (काव्य) 
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रचनाकार:

 सुषम बेदी

वाटिका की तापसी सीता का
नकटी शूर्पणखा का
चिर बिरहन गोपिका का
जुए में हारी द्रौपदी का
यम को ललकारती
सावित्री का।

-सुषम बेदी

[सुषम बेदी की कविता]

 

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