जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।

प्रार्थना

 (काव्य) 
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रचनाकार:

 रामप्रसाद बिस्मिल

दुख दूर कर हमारे, संसार के रचैया!
जल्दी से दे सहारा, मंझदार में है नैया॥

तुझ बिन कोई हमारा, रक्षक नही यहाँ पर;
ढूँढा जहान सारा, तुम सा नही रखैया॥

दुनिया में खूब देखा, आँखे पसार करके
साथी नही हमारा माँ, बाप और भैया॥

सुख के सभी हैं साथी, दुनिया के मित्र सारे,
तेरा ही नाम प्यारा, दुख-दर्द के बचैया॥

दुनिया में फँस के हमको, हासिल हुआ न कुछ भी;
तेरे बिना हमारा, कोई नही सुनैया॥

चारों तरफ से हम पर, ग़म की घटा है छाई
सुख का करो उजाला, हे प्रकाश के करैया।

अच्छा - बुरा है जैसा, राजी मैं 'राम' रहता;
चेरा है यह तुम्हारा, सुधि लेउ सुधि लिवैया॥

- रामप्रसाद बिस्मिल
[शहीद रामप्रसाद बिस्मिल की स्वरचित रचनाएँ]

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