अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।

नन्दा

 (कथा-कहानी) 
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रचनाकार:

 कन्हैया लाल मिश्र 'प्रभाकर' | Kanhaiyalal Mishra 'Prabhakar'

नन्दा तीन दिन से भूखा था; पेट की ज्वाला से अधमरा!

देखा, सेठ रामलाल मीठे पूड़ों का थाल भरे, देवीकुण्ड पर बन्दर जिमाने जा रहे हैं। गिड़गिड़ाकर उसने कहा-
"सेठजी, मैं तीन दिन से भूखा हूँ, जान निकली जा रही है। कुछ पूड़े मुझे भी दीजिए।"

"भूखा है, तो शहर में जाकर माँग, ये हनुमानजी के पूड़े तुझे कैसे दे दें?"

"शहर में जाने की हिम्मत नहीं है, सेठजी! भूखे की जान बचाने से हनुमानजी आप पर प्रसन्न ही होंगे।"

"अच्छा रहने दे, मुझे तेरे उपदेशकी ज़रूरत नहीं है।"

बडे प्रेम से बन्दर जिमाकर जब सेठजी लौटे, तो देखा, नन्दा रास्ते पर पड़ा है। घृणा के स्वरमें आप-ही-आप बोले, "अभी तो बदमाश भूखों मर रहा था! इतने में सो भी गया!"

पर नन्दा उस नींद में सो रहा था, जिससे आज तक कोई नहीं जागा!

-कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर

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