अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।

दर्द की सारी लकीरों.... | ग़ज़ल 

 (काव्य) 
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रचनाकार:

 विजय कुमार सिंघल

दर्द की सारी लकीरों को छुपाया जाएगा
उनकी ख़ातिर आज हर चेहरा सजाया जाएगा

सच तो यह है सब के सब लेंगे दिमाग़ों से ही काम
मामला दिल का वहां यूँ तों उठाया जाएगा

हो ही जाएगा किसी दिन मुझसे मेरा सामना
ख़ुद को ख़ुद से कितने दिन आखिर बचाया जाएगा

हम ग़लत लोगों को हरगिज़ ठीक कह सकते नहीं
गो  हमें मालूम है  हमको सताया जाएगा

जालिमों के वास्ते  उसमें जगह होगी नहीं
मेरे सपनों का नगर जब भी बसाया जाएगा

हम समय के नाम ऐसी चिट्टियां लिख जाएंगे
पीढ़ी-दर-पीढ़ी जिन्हें पढ़कर सुनाया जाएगा

-विजय कुमार सिंघल

 

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