अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
एक अदद घर  (काव्य)    Print this  
Author:जयप्रकाश मानस | Jaiprakash Manas

जब
माँ
नींव की तरह बिछ जाती है
पिता
तने रहते हैं हरदम छत बनकर
भाई सभी
उठा लेते हैं स्तम्भों की मानिंद
बहन
हवा और अंजोर बटोर लेती है जैसे झरोखा
बहुएँ
मौसमी आघात से बचाने तब्दील हो जाती हैं दीवाल में
तब
नई पीढ़ी के बच्चे
खिलखिला उठते हैं आँगन-सा
आँगन में खिले किसी बारहमासी फूल-सा
तभी गमक-गमक उठता है
एक अदद घर
समूचे पड़ोस में
सारी गलियों में
सारे गाँव में
पूरी पृथ्वी में

- जयप्रकाश मानस
[साभार - अबोले के विरुद्ध]

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