अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
हौसला (काव्य)    Print this  
Author:देवेन्द्र कुमार मिश्रा

कागज की नाव बही
और डूब गई
बात डूबने की नहीं
उसके हौसले की है
और कौन मरा कितना जिया
सवाल ये नहीं
बात तो हौसले की है
बात तो जीने की है
कितना जिया ये बात बेमानी है
किस तरह जिया
कागज़ी नाव का हौसला देखिये
डूबना नहीं।


- देवेन्द्र कुमार मिश्रा
  पाटनी कालोनी, भरत नगर,
  चन्दनगाँव जि.छिन्दवाड़ा (म.प्र.) 480001
  मो.:9425405022

 

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