अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
ग्रंथकर्ता की प्रार्थना | फ़िजी की कहानी (कथा-कहानी)    Print this  
Author:तोताराम सनाढ्य | फीजी

प्रिय देशबंधु!

मैं वास्तव में उन महानुभावों का अत्यंत कृतज्ञ हूँ, जिन्होंने मेरी इस क्षुद्र पुस्तक को अपना कर मेरे प्रयत्न को सफल किया है। जिन समाचार-पत्रों के संपादकों ने मुझे इस कार्य में सहायता दी है, उनका मैं आजन्म ऋणी रहूँगा। मैं उन्हें विश्वास दिलाता हूँ कि मैंने उनकी सहायता का दुरूपयोग नहीं किया है। यह उन्हीं की कृपा का फल था कि मैं चार सौ से अधिक प्रतियाँ हरिद्वार, कुंभ, लखनऊ साहित्य सम्मेलन तथा मद्रास कांग्रेस के उत्सव पर बिना मूल्य वितरण कर सका, और उन्हीं की मदद के कारण मेरी तुच्छ पुस्तक को आशातीत सफलता प्राप्त हुई। जो थोड़ा सा काम मैं इस विषय में अपनी तुच्छातितुच्छ बुद्धि के अनुसार करता हूँ, उसके लिए मुझे प्रशंसात्मक शब्दों तथा धन्यवादों की आवश्यकता नहीं हैं, क्योंकि ऐसा करना मेरा कर्तव्य ही है।

यदि हो सका तो शीघ्र ही मैं अपनी दूसरी पुस्तक ले कर आपकी सेवा में उपस्थित होऊँगा।

विनीत
तोताराम सनाढ्य

 

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