जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।
खेल महीनों का | बाल कविता (बाल-साहित्य )    Print this  
Author:दिविक रमेश

अच्छी लगती हमें जनवरी
नया वर्ष लेकर है आती।
ज़रा बताओ हमें फरवरी
कैसे इतने फूल खिलाती।

ज़रा बताना हमको भी तो
मार्च गर्म क्यों होने लगता?
आते ही अप्रैल हमें क्यो
छुट्टियों का सा मौसम लगता?

मई-जून पर कैसे हैं जी
जा पहाड़ हो जाते ठंडे।
पर दिल्ली-कलकत्ता आकर
बरसाते गर्मी के डंडे।

जुलाई-अगस्त महीनों में
सब कुछ हरा भरा हो जाता।
और सितम्बर-अक्टूबर में
मौसम खूब सुहाना होता।

दिल्ली की मैं बात करूं तो
आ नवम्बर सर्दी लाता।
और दिसम्बर आकर उसको
बढ़ा बढ़ा कर खूब बढ़ाता।

-दिविक रमेश

[Children's Hindi Poems by Divik Ramesh]

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