यह संदेह निर्मूल है कि हिंदीवाले उर्दू का नाश चाहते हैं। - राजेन्द्र प्रसाद।
अहसास | सुशांत सुप्रिय की कविता (काव्य)    Print this  
Author:सुशांत सुप्रिय

जब से मेरी गली की कुतिया
झबरी चल बसी थी
गली का कुत्ता कालू
सुस्त और उदास
रहने लगा था

कभी वह मुझे
किसी दुखी दार्शनिक-सा लगता
कभी किसी हताश भविष्यवेत्ता-सा
कभी वह मुझे
कोई उदास कहानीकार लगता
कभी किसी पीड़ित संत-सा

वह मुझे और न जाने
क्या-क्या लगता
कि एक दिन अचानक
गली में आ गई
एक और कुतिया
गली के बच्चों ने
जिसका नाम रख दिया चमेली

मैंने पाया कि
चमेली को देखते ही
ख़ुशी से उछलते-कूदते हुए
रातोंरात बदल गया
हमारा कालू

कितना आदमी-सा
लगने लगा था
वह जानवर भी
अपनी प्रसन्नता में


- सुशांत सुप्रिय
 मार्फ़त श्री एच.बी. सिन्हा
 5174 , श्यामलाल बिल्डिंग ,
 बसंत रोड,( निकट पहाड़गंज ) ,
 नई दिल्ली - 110055
मो: 9868511282 / 8512070086
ई-मेल : sushant1968@gmail.com

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