जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।
हौसले मिटते नहीं  (काव्य)    Print this  
Author:डॉ शम्भुनाथ तिवारी

हौसले मिटते नहीं अरमाँ बिखर जाने के बाद
मंजिलें मिलती है कब तूफां से डर जाने के बाद

कौन समझेगा कभी उस तैरने वाले का ग़म
डूब जाये जो समंदर पार कर जाने के बाद

आग से जो खेलते हैं वे समझते है कहाँ
बस्तियाँ फिर से नहीं बसतीं उजड़ जाने के बाद

आशियाने को न जाने लग गई किसकी नज़र
फिर नहीं आया परिंदा लौटकर जाने के बाद

ज़लज़ले सब कुछ मिटा जाते हैं पल भर में मगर
ज़ख्म मिटते है कहाँ सदियाँ गुज़र जाने के बाद

आज तक कोई समझ पाया न यह राज़े-हयात
आदमी आखिर कहाँ जाता है मर जाने के बाद

प्यार से जितनी भी कट जाए वही है ज़िंदगी
याद कब करती है दुनिया कूच कर जाने के बाद


- डॉ. शम्भुनाथ तिवारी
  एसोशिएट प्रोफेसर
  हिंदी विभाग,
  अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी,
  अलीगढ़(भारत)
  संपर्क-09457436464
  ई-मेल: sn.tiwari09@gmail.com

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