अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
डॉ रामनिवास मानव के हाइकु  (काव्य)    Print this  
Author:डॉ रामनिवास मानव | Dr Ramniwas Manav

डॉ. 'मानव' हाइकु, दोहा, बालकाव्य तथा लघुकथा विधाओं के सुपरिचित राष्ट्रीय हस्ताक्षर हैं तथा विभिन्न विधाओं में लेखन करते हैं। उनके कुछ हाइकु यहाँ दिए जा रहे हैं:

१)

मोटी कमाई;
देश तो है बकरा,
नेता कसाई ।


२)

धक्कमपेल,
चल रहा देश में
कुर्सी का खेल ।


३)

पहनी खादी,
तिजोरी भरने की
मिली आजादी ।


४)

चेहरों पर
मुखौटे-ही-मुखौटे,
मैं-तुम कौन ?


५)

हिन्दू-मुस्लिम,
जैन-बोद्ध-ईसाई,
किसके भाई !


६)

हिंसा का दौर,
शहरों में बसते
आदमख़ोर ।

 

७)

सौ-सौ फ़क़ीर,
लेकिन है एक भी
नहीं कबीर ।

 

८)

कैसी दलील !
जज तो हैं बहरे,
अंधे वकील ।

 

९)

काम न धंधा
गले में ग़रीब के
भूख का फंदा ।

 

१०)

फटी कमीज़
उधड़े सब धागे;
क्या होगा आगे !

 

- डा. रामनिवास मानव

 

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