देशभाषा की उन्नति से ही देशोन्नति होती है। - सुधाकर द्विवेदी।
ऐसे रोकें, शादी की फिजूलखर्ची (विविध)    Print this  
Author:डॉ. वेदप्रताप वैदिक | Dr Ved Pratap Vaidik

भारतीय समाज में तीन बड़े खर्चे माने जाते हैं। जनम, मरण और परण! कोई कितना ही गरीब हो, उसके दिल में हसरत रहती है कि यदि उसके यहां किसी बच्चे ने जन्म लिया हो या किसी की शादी हो या किसी बुज़ुर्ग की मृत्यु हुई हो तो वह अपने सगे-संबंधियों और मित्रों को इकट्ठा करे और उन्हें कम से कम भोजन तो करवाए। इस इच्छा को गलत कैसे कहा जाए? यह तो स्वाभाविक मानवीय इच्छा है। लेकिन यह इच्छा अक्सर बेकाबू हो जाती है। लोग अपनी चादर के बाहर पाँव पसारने लगते हैं।

नवजात शिशु के स्वागत में लोग इतना बड़ा समारोह आयोजित कर देते हैं कि वह बच्चा जन्मजात क़र्जदार बन जाता है। शादीयों में लोग इतना खर्च कर देते हैं कि आगे जाकर उनका गृहस्थ जीवन चौपट हो जाता है। मृत्यु-भोज का कर्ज़ चुकाने में ज़िंदा लोगों को तिल-तिलकर मरना होता है। यह बीमारी आजकल पहले से कई गुना बढ़ गई है। आजकल निमंत्रण-पत्रों के साथ प्रेषित तोहफ़ों पर ही लाखों रू. खर्च कर दिए जाते हैं। यह शेख़ी का जमाना है। हर आदमी अपनी तुलना अपने से ज्यादा मालदार लोगों से करने लगता है। दूसरों की देखा-देखी लोग अंधाधुंध खर्च करते हैं। इस खर्च को पूरा करने के लिए सीधे-सादे लोग या तो कर्ज़ कर लेते हैं या अपनी ज़मीन-जायदाद बेच देते हैं और तिकड़मी लोग घनघोर भ्रष्टाचार में डूब जाते हैं। येन-केन-प्रकरेण पैसा कमाने के लिए वे कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं। अगर ये सब दाव-पेच भी फेल हो जाएं तो वे लड़की वालों पर सवारी गाँठते हैं। अपनी हसरतों का बोझ वे दहेज़ के रूप में वधू-पक्ष पर थोप देते हैं।

इसी प्रकृति को क़ाबू करने के लिए सरकार का दहेज़-विरोधी प्रकोष्ठ कुछ ऐसे कानून-क़ायदे लाने की सोच रहा है, जिससे शादियों की फिजूलखर्ची पर रोक लग सके। एक सुझाव यह भी है कि लोगों की आमदनी और शादी के खर्चे का अनुपात तय कर दें। यह सुझाव बिल्कुल बेकार सिद्ध होगा, जैसा कि चुनाव-खर्च का होता है। हॉं, अतिथियों की संख्या जरूर सीमित की जा सकती है और परोसे जानेवाले व्यंजनों की भी। इस प्रावधान का कुछ असर जरूर होगा लेकिन सबसे ज्यादा असर इस कदम का होगा कि जहां भी क़ानून के विरूद्ध लाखों-करोड़ों का खर्च दिखे, सरकार वहीं शादी के मौके पर छापा मार दे। वर-वधू के रिश्तेदारों को गिरफ्तार कर ले और उनसे हिसाब माँगें कि वे यह पैसा कहां से लाए। देश में अगर ऐसे दर्जन भर छापे भी पड़ जाएं तो शेष फ़िजूलख़र्च लोगों के पसीने छूट जाएँगे।


dr.vaidik@gmail.com
फरवरी 2012
ए-19, प्रेस एनक्लेव, नई दिल्ली-17,
फोन (निवास) 2651-7295, मो. 98-9171-1947

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