भारत की परंपरागत राष्ट्रभाषा हिंदी है। - नलिनविलोचन शर्मा।
कलम गहो हाथों में साथी (काव्य)    Print this  
Author:हरिहर झा | ऑस्ट्रेलिया | Harihar Jha

कलम गहो हाथों में साथी
शस्त्र हजारों छोड़

तूलिका चले, खुले रहस्य तो
धोखों से उद्धार
भेद बताने लगें आसमाँ
जिद्द छोड़ें गद्दार
पड़ाव हर मंजिल के नापें
चट्टानो को तोड़

मोड़ें बादल बिजली का रूख
शयन सैंकड़ों छोड़

कीचड़ ना हो, नदियाँ निर्मल
दूर हो भ्रष्टाचार
कोयल खुद अंडे सेये
निर्मल कर दे आचार
श्रम को स्वर दे बाग-बगीचे
घर आँगन हर मोड़

खुशियों के सिक्के बाँटे हम
लोभ पचासों छोड़

प्रयोगशाला रणभूमि है
परखनली हथियार
'कुञ्जी पट' से नभमण्डल की
खेवेंगे पतवार
किरण मिले भारत प्रतिभा की
'विश्व-गाँव' में होड़

'होरी' दूहे धेनु
खनकते सिक्के लाखों छोड़

- हरिहर झा, ऑस्ट्रेलिया

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