अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
हाइकु - रोहित कुमार हैप्पी (काव्य)    Print this  
Author:रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

दोस्त है कृष्ण
तुम हर्जाना भरो
सुदामा बन!


#


राम बनना
डरना मत कभी
बनवास से!


#


हाथ थमाया
वो अपना बनाया
हाथ है, ना वो


#


चीर-हरण..
आँखें ढूंढ रही हैं...
कहाँ हो कृष्ण?


#


है मधुमास
आंखे गंगा-जमुना
सीया उदास


#


भूख-बेकारी
बड़े-बड़े सपने
सामने बैंक


#


नशे में धुत्त
मंडे टू संडे - रोज
वो समदर्शी


#


बैंक बैलेस
कोठी, बंगला, कार
उड़े हैं बाल


#


है सप्ताहांत
पार्टी...डिस्को...खिसको
ये अभिमन्यु


#


पेड़ पे काग
शायद कोई आया
डाकिया-बिल


#


होंठ हैं चुप्प
रात अंधरी घुप्प
नयना बोले


#


होली, दीवाली
दिल है खाली-खाली
ये है विदेस


#


आँखों में नमी
बेगाना कोई घर
कहाँ है अम्मी


#


बूढ़ा शरीर
कुछ ताजे सपने
टूटा है दिल


- रोहित कुमार हैप्पी

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