आरजू (काव्य)    Print this  
Author:सुभाषिनी लता कुमार | फीजी

इंतजार की आरजू अब नहीं रही
खामोशियों की आदत हो गई है,
न कोई शिकवा है न शिकायत
अजनबियों सी हालत हो गई है।

चुभती रहती चाँदनी
बड़ी कठिन ये रात हो गई है,
एक तेज हूक उठती है मन में मेरे
खुशी भी इतेफाक हो गई है।

अब है तो सिर्फ तन्हाई
जो एकांत भरी भीड़ दे गई है,
न जाने हैं ये अश्क कैसे बावरे
जो बिन बादल बरसात दे गई है।

बिन तेरे,
उदासी है छाई
जिंदगी मेरी
एक बनवास हो गई है।

-शुभाशनी लता कुमार
फीजी

 

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