यदि पक्षपात की दृष्टि से न देखा जाये तो उर्दू भी हिंदी का ही एक रूप है। - शिवनंदन सहाय।
काँटों की गोदी में (काव्य)    Print this  
Author:डॉ रमेश पोखरियाल निशंक

काँटों की शैया में जिसने
कोमलता को छोड़ा ना,
चुभन पल-पल होने पर भी
साहस जिसने तोड़ा ना।

जो विकसित संघर्ष में होता
काँटों से लोरी सुनता,
धैर्य सदा ही मन में रखता
नहीं विपदा से वह डरता।

पास आ मुझे कहता वो
जीवन में हर कष्ट सहो,
संकट की इन घड़ियों में
आगे बढ़ते सदा रहो।

- रमेश पोखरियाल 'निशंक'
   [ मातृभूमि के लिए ]

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