जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।
रामप्रसाद 'बिस्मिल' ने कहा था | अमर वचन  (विविध)    Print this  
Author:रामप्रसाद बिस्मिल

यदि किसी के मन में जोश, उमंग या उत्तेजना पैदा हो तो शीघ्र गावों में जाकर कृषकों की दशा सुधारें।

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किसी को घृणा तथा उपेक्षा की दृष्टि से न देखा जाये, किन्तु सबके साथ करुणा सहित प्रेमभाव का बर्ताव किया जाए।

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श्रम-जीवियों की उन्नति की चेष्टा करें, जहां तक हो सके साधारण जन समूह को शिक्षा दें।

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यथा साध्य दलितोद्धार के लिए प्रयत्न करें।

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मैं जानता हूँ कि मैं मरूँगा, किन्तु मैं मरने से नहीं घबराता। किन्तु जनाब, क्या इससे सरकार का उद्देश्य पूर्ण होगा? क्या इसी तरह हमेशा भारत माँ के वक्षस्थल पर विदेशियों का तांडव नृत्य होता रहेगा? कदापि नहीं, इतिहास इसका प्रमाण है। मैं मरूँगा किन्तु फिर दुबारा जन्म लूँगा और मातृभूमि का उद्धार करूँगा

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उदय काल के सूर्य का सौन्दर्य डूबते हुए सूर्य की छटा को कभी नहीं पा सकता।

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प्रेम का पंथ कितना कठिन है, संसार की सारी आपत्तियाँ मानों प्रेमी के लिए ही बनी हों!

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उफ़! कैसा व्यापार है कि हम सब कुछ दे दें और हमें------कुछ नहीं। लेकिन फिर भी हम मानें नहीं।

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यदि देशहित मरना पड़े मुझे सहस्रों बार भी, तो भी न मैं इस कष्ट को निज ध्यान में लाऊं कभी। हे ईश! भारतवर्ष में शत बार मेरा जन्म हो, कारण सदा ही मृत्यु का देशोपकारक कर्म हो।

- रामप्रसाद 'बिस्मिल'

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