मुस्लिम शासन में हिंदी फारसी के साथ-साथ चलती रही पर कंपनी सरकार ने एक ओर फारसी पर हाथ साफ किया तो दूसरी ओर हिंदी पर। - चंद्रबली पांडेय।
तुझ बिन कोई हमारा (काव्य)    Print this  
Author:रामप्रसाद बिस्मिल

तुझ बिन कोई हमारा, रक्षक नही यहाँ पर;
ढूँढा जहान सारा, तुम सा नही रखैया॥

दुनिया में खूब देखा, आँखे पसार करके
साथी नही हमारा माँ, बाप और भैया॥

सुख के सभी हैं साथी, दुनिया के मित्र सारे,
तेरा ही नाम प्यारा, दुख-दर्द के बचैया॥

दुनिया में फँस के हमको, हासिल हुआ न कुछ भी;
तेरे बिना हमारा, कोई नही सुनैया॥

चारों तरफ से हम पर, ग़म की घटा है छाई
सुख का करो उजाला, हे प्रकाश के करैया।

अच्छा - बुरा है जैसा, राजी मैं 'राम' रहता;
चेरा है यह तुम्हारा, सुधि लेउ सुधि लिवैया॥

- रामप्रसाद बिस्मिल
[यह रचना शहीद रामप्रसाद बिस्मिल की स्वरचित रचना है। उपरोक्त रचना में बिस्मिल ने अपना उपनाम 'राम' लिखा है।  वे बिस्मिल के अतिरिक्त राम और अज्ञात  उपनाम से भी लिखते रहे हैं। ] 

 

Previous Page  |  Index Page  |   Next Page
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश