अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
जीवन का अधिकार (काव्य)    Print this  
Author:सुमित्रानंदन पंत | Sumitranandan Pant

जो है समर्थ, जो शक्तिमान,
जीवन का है अधिकार उसे।
उसकी लाठी का बैल विश्‍व,
पूजता सभ्‍य-संसार उसे!

दुर्बल का घातक दैव स्‍वयं,
समझो बस भू का भार उसे।
'जैसे को तैसा'-- नियम यही,
होना ही है संहार उसे।

है दास परिस्थितियों का नर,
रहना है उसके अनुसार उसे।
जीता है योग्‍य सदा जग में ,
दुर्बल ही है आहार उसे।

तृण, झष पशु से नर-तन देता,
जीवन विकास का तार उसे।
वह शासन क्‍यों न करे भू पर,
चुनना है सब का सार उसे।

-सुमित्रानंदन पंत

 

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