कितना अच्छा होता न तब | बाल कविता (बाल-साहित्य )    Print this  
Author:दिविक रमेश

सब कहीं ले जा सकते हम!
कितना अच्छा होता न तब?

और समुद्र सिर पर ढ़ोकर
सब कहीं ले जा सकते हम!
कितना अच्छा होता न तब?

अगर स्कूलों को रहड़ा कर
सब कहीं ले जा सकते हम!
कितना अच्छा होता न तब?

जो कुछ भी है इस धरती का
अगर सभी का कर सकते हम!
कितना अच्छा होता न तब?

पर कितने छोटू हैं हम तो
हाथ भी देखो कितने छोटे!
अगर मदद कर देता कोई
कितना खुश हम भी हो लेते।

कितना अच्छा होता न तब?

-दिविक रमेश

[Children's Hindi Poems by Divik Ramesh]

 

Previous Page  |  Index Page  |   Next Page
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें