देशभाषा की उन्नति से ही देशोन्नति होती है। - सुधाकर द्विवेदी।
भूले स्वाद बेर के  (काव्य)    Print this  
Author:नागार्जुन | Nagarjuna

सीता हुई भूमिगत, सखी बनी सूपनखा
वचन बिसर गए देर के सबेर के
बन गया साहूकार लंकापति विभीषण
पा गए अभयदान शावक कुबेर के
जी उठा दसकंधर, स्तब्ध हुए मुनिगण
हावी हुआ स्वर्णमरिग कंधों पर शेर के
बुढ़भस की लीला है, काम के रहे न राम
शबरी न याद रही, भूले स्वाद बेर के

--नागार्जुन
[1961]

 

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