भारत-दर्शन :: इंटरनेट पर विश्व की सबसे पहली ऑनलाइन हिंदी साहित्यिक पत्रिका
आँसू से भरने पर आँखें और चमकने लगती हैं।सुरभित हो उठता समीर जब कलियाँ झरने लगती हैं।
बढ़ जाता है सीमाओं से जब तेरा यह मादक हास,समझ तुरत जाता हूँ मैं--'अब आया समय बिदा का पास।'
-अज्ञेय
इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें