अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
आज के हाइकु (काव्य)    Print this  
Author:रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

भूख-गरीबी
करा देती है दूर
बड़े करीबी।

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औढ़ू, बिछाऊं
भाषण तुम्हारा ये
किसे खिलाऊँ?

#

सेवक भाई!
भाषण देता नहीं,
रोटी-कपड़ा!

#

जाने दे यार
देखा है हमने भी
नेताई प्यार।

#

सुनाता है तू
भूखे को कोई राग
दे रोटी-साग!

#

सपने अच्छे हैं
लेने-देने को पर...
पेट भरेंगे?

#

भाषण, नारे
और कुछ जलसे
क्या करते हैं?
 
#

- रोहित कुमार 'हैप्पी'

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