अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
हिंदी पर दोहे  (काव्य)    Print this  
Author:रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

बाहर से तो पीटते, सब हिंदी का ढोल।
अंतस में रखते नहीं, इसका कोई मोल ।।

एक बरस में आ गई, इनको हिंदी याद।
भाषण-नारे दे रहे, दें ना पानी-खाद ।।

अपनी मां अपनी रहे, इतना लीजे जान ।
उसको मिलना चाहिए, जो उसका सम्मान ।।

हिंदी की खाते रहे, अंग्रेजी से प्यार ।
हिंदी को लगती रही, बस अपनों की मार ।।

हिंदी को मिलते रहे, भाषण-नारे-गीत ।
पर उसको तो चाहिए, तेरी-मेरी प्रीत ।।

सुन! हिंदी में बोल तू, कर कुछ ऐसा काम ।
दुनिया भर में हिंद का, होवे ऊंचा नाम ।।

हिंदी में मिलती हमें, ‘रोहित' बड़ी मिठास ।
इससे सुख मिलता हमें, सबसे लगती खास ।।

खुसरो के अच्छे लगें, ‘रोहित' हिंदवी गीत ।
मीरा-तुलसी-सूर से, लागी हमको प्रीत ।।

दो दिन मनते साल में, हिंदी के त्यौहार ।
बाकी दिन बस झेलती, ये अपनों की मार ।।

- रोहित कुमार 'हैप्पी'

 

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