देशभाषा की उन्नति से ही देशोन्नति होती है। - सुधाकर द्विवेदी।
प्रीता व्यास से बातचीत  (विविध)    Print this  
Author:रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

प्रीता व्यास का जन्म भारत में हुआ लेकिन कई दशकों से वे न्यूजीलैंड निवासी हैं। आपने 175 पुस्तकें लिखी है जिनमें अधिकतर अँग्रेज़ी बाल साहित्य है। अँग्रेज़ी बाल साहित्य के अतिरिक्त आपने हिंदी में भी 'पत्रकारिता परीक्षा विश्लेषण', 'इंडोनेशिया की लोक कथाएं', 'दादी कहो कहानी', 'बालसागर क्या बनेगा', 'जंगल टाइम्स', 'कौन चलेगा चांद पर रहने', 'लफ्फाजी नहीं होती है कविता' इत्यादि हिंदी पुस्तकें लिखी है। आपकी नई पुस्तक 'पहाड़ों का झगड़ा' माओरी लोक-कथा संकलन है। 

आप की नई पुस्तक है, 'पहाड़ों का झगड़ा' जो माओरी लोक कथाएं हैं। अपनी इस नई पुस्तक के बारे में कुछ बताएं?

Maori Lok kathayein

जैसा कि आप जानते ही हैं, 'पहाड़ों का झगड़ा' माओरी लोक कथाएं हैं। न्यूजीलैंड यानि 'सफेद बादलों का देश'। इस खूबसूरत देश की धरती पर सदियों पहले जो लोग आकर बसे वे माओरी कहलाए। इनकी कहानियों में धरती, आकाश और समुद्र व समुद्री जीव-जंतु विद्यमान है। यह पुस्तक बिल्कुल एक नई ज़मीन की है, इसके बावजूद मुझे उम्मीद है कि यह कहानियाँ रोचक लगेंगी और कहीं-कहीं जुड़ी हुई-सी भी।

माओरी लोक कथाओं का विचार आपके मन में कैसे आया?

इससे पहले भी मैं इंडोनेशिया की लोक कथाएं लिख चुकी हूँ। तब भी मैंने कभी सोचा नहीं था कि मैं ऐसा करूंगी। पिछले काफी समय से मैं न्यूजीलैंड की लोक कथाओं पर काम कर रही थी। उसी का परिणाम यह माओरी लोक कथाओं की पुस्तक, आज आपके हाथ में है ।

माओरी लोक कथाएं लिखना काफी कठिन रहा होगा?

शुरू में बहुत परिश्रम करना पड़ा क्योंकि यह अँग्रेज़ी से हिंदी अनुवाद करने जैसा कोई सरल कार्य नहीं था, जैसा कि आप जानते हैं, न्यूजीलैंड की लोक कथाओं में बहुत से शब्द, स्थान व पात्रों के नाम माओरी भाषा में ही होते हैं। हिंदी में उनका भावानुवाद करना सरल कार्य नहीं था। मुझे बहुत सारी पुस्तकों का अध्ययन करना पड़ा। लगभग दो-तीन साल से मैं इसी काम में लगी हुई थी।

माओरी लोक-कथाओं की भारतीय लोक-कथाओं से तुलना की जाए तो ये किस प्रकार भिन्न हैं?

Preeta Vyas
प्रीता व्यास 

हर देश की लोककथा वहां के खान पान व शैली के कारण भिन्न होती है, जैसे भारतीय लोक कथाओं में अधिकतर राजकुमार, राजा-रानी व परियों इत्यादि की कल्पना की जाती है, वहीं माओरी लोक कथाओं में अधिकतर 'समुंदर, मछली, अन्य समुद्री जंतु व जादुई शक्तियां' होती हैं।

लोक कथाओं में एक बड़ी समानता भी रहती है, उसके पात्रों में शक्ति पाने की। जादुई शक्ति पाने की इच्छा कि मेरे पास जादुई शक्तियां हो! शैलीगत अंतर होने के बावजूद लोक कथाओं में धरती, आकाश, पाताल विद्यमान रहते हैं।

इस समय जब इंटरनेट, प्रौद्योगिकी, मोबाइल इन सब से बच्चे खेलते हैं, इन परिस्थितियों में लोक कथाओं का क्या महत्व है?

यह सच है कि वर्तमान में बच्चे दादी-नानी से कहानियाँ सुनते दिखाई नहीं पड़ते। अगर कोई सुनाना भी चाहे तो बच्चा कहता है, 'मैं तो एक्सबॉक्स खेल रहा हूँ ।' हमारी माँ हमें खूब लोक कथाएं और लोकगीत सुनाया करती थी, निस्संदेह मेरी माँ की तरह बहुत-सी माएं होंगी लेकिन अब बदलते हुए समय के साथ 'माँ' भी बदली है। उसकी दिनचर्या बदली है। नई पीढ़ी पर तो आज के युग का प्रभाव स्वाभाविक ही है।

हमें भी नई तकनीक के साथ जुड़ना जरूरी है। आज पढ़ने की जगह ‘विजुअल' पर ज्यादा ध्यान रहता है। हम अपनी लोक-निधि को भी आज के समय के अनुरूप, जैसे ‘वॉइस' और ‘विजुअल' का इस्तेमाल करके समयानुकूल बना सकते हैं ताकि हमारी लोक-कथाएं और हमारे लोकगीत प्रचलित रहें।

आपने खूब बाल-साहित्य लिखा है, 175 पुस्तकें लिख चुकीं हैं। अब आगे क्या करना चाहेंगी?

"175 और!" वे चहकती हुई खिलखिला देती हैं। फिर कहती हैं, "आखिरी साँस तक कर्मठ बना रहना है। कौन आपको पूछता है...कौन नहीं पूछता यह महत्वपूर्ण नहीं है।

लेखन क्रांति पैदा कर देता है, ऐसा दिखाई नहीं पड़ता फिर लेखक लिखता क्यों है?

बहुत अच्छा प्रश्न है। देखिये, जो लोग लेखन से किसी बड़े परिवर्तन की उम्मीद करते हैं, उन्हें ना-उम्मीदी के लिए तैयार रहना चाहिए। लेखन का जहाँ तक सवाल है लेखन व सृजन से सामाजिक, साहित्यिक अभिवृद्धि होती है व संतुष्टि मिलती है। बहुत से लोग हैं जो लिख रहे है किंतु उन्हें ख़ुद नहीं पता कि वे क्या लिख रहे हैं।

बातचीत करते-करते प्रीताजी ने जब पूछा, "चाय में शक़्कर लेंगे?" तो आभास हुआ कि गृहणी-धर्म और सृजन दोनों साथ-साथ कैसे चल सकते हैं। तभी उनके बेटे का एक दोस्त आ जाता है और प्रीता जी उससे परिचय करवाते हुए अपने बेटे को आवाज देती हैं।

हमारी बातचीत का सिलसिला जारी रहता है। वे बताती हैं कि कैसे उनके घर में साहित्यिक माहौल था और किन-किन हिंदी साहित्यकारों से वे अपने दादा जी के माध्यम से परिचित रही हैं। प्रीता व्यास 'विंध्य कोकिल भैयालाल व्यास' की पोती हैं। प्रीता व्यास स्वयं भी रेडियो से जुड़ी हुई हैं व अपने दादा स्व. भैयालाल व्यास की परम्परा को आगे बढ़ा रही हैं।

- रोहित कुमार 'हैप्पी'

Previous Page  |  Index Page  |   Next Page
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें