देशभाषा की उन्नति से ही देशोन्नति होती है। - सुधाकर द्विवेदी।
 
पहचान (काव्य)     
Author:रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

अपनी गली
मोहल्ला अपना,
अपनी बाणी
खाना अपना,
थी अपनी भी इक पहचान।

महानगर में बसे हुए हैं
बड़े-बड़े हैं सभी मकान,
फ़ीकी हँसी लबों पर रखते
सुंदर डाले हैं परिधान,
भीड़भाड़ में ढूँढ रहे हैं
खोई हुई अपनी पहचान।

- रोहित कुमार 'हैप्पी'

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